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लेखांक ८ आखिर आश्वासन किससे मिलता है ?
पू. बापू को ब्रह्म में लीन हुए इतने दिन बीत गये हैं लेकिन हमारे आँसु थमते नहीं हैं, रुदन रुकता नहीं है । रेडियो पर किसी के द्वारा दी गई अंजलि को सुनते हैं या किसी भी समाचारपत्र, दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या अन्य किसी भी प्रकार का सामयिक, चाहे वह किसी भी भाषा में, किसी भी पंथ, कौम या राष्ट्र का हो - प्रत्येक में बापू के निधन से व्याप्त शोक के स्वर ही सुनाई देते हैं और इन्हें पढ़ते ही हम सब के दिल भर आते हैं। कोई भी किसी को सांत्वना देने की स्थिति में नहीं है। अद्वैत जगत ने ऐसा रुदन इतिहास में कभी भी देखा हो ऐसा ज्ञात नहीं है ।
__ ऐसा महारुदन किस कारण से ? उत्तर मिलता है कि महाकरुणा का वियोग प्राप्त हुआ है। बापूकी करुणा किसी भी संत य महंत की करुणा से भिन्न प्रकार की थी। त्रिविध दुःखों की आग में जल रही मानवता को शांति दिलाने की उनकी तीव्र इच्छा और उनके प्रयत्न भी ऐसे थे जो जगत ने आज के पहले कभी देखे नहीं हैं। इन सब का वर्णन करने के लिए बुद्धि तथा वाणी के साधन ‘सर्वमिदमत्यल्पं भवति' इस न्याय से अल्पमात्र बन जाते हैं, अपर्याप्त सिद्ध होते हैं। ... जब निर्वासितों को आश्वासन देने के लिए कोई शक्तिमान न हो, जब अपहृत स्त्रियों को किसी भी दिशा से आशा का किरण दिखाई न देता हो, जब किसी एक वर्ग पर उसके विरोधी वर्ग के द्वारा अकथ्य त्रास दिया जा रहा हो और जहाँ सरकारों के या अन्य शुभेच्छकों के कोई भी प्रयत्न सफल न हो रहे हों तब प्रत्येक दुःखी व्यक्ति को अपने वैयक्तिक चारित्र्यबल या तपस्याबल के सहारे राहत दिलानेवाला कौन था ? वह तो बापू की जीवंत और अविश्रांत कार्य करनेवाली