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श्रीमद् राजचंद्र - एक समालोचना
तत्त्वज्ञान -
श्रीमद् का स्वयं का - मौलिक कहा जा सके ऐसा कोई तत्त्वज्ञान उनके साहित्य में नहीं है । भारतीय ऋषियों का चिंतन-मनन ही उनके साहित्य में संक्रमित होता है। उसमें भी उनके प्राथमिक जीवन में वैदिक या वैष्णव दर्शन के संस्कार थोड़े-बहुत अंशों में जो थे, वे समय के साथ पूर्णतः नष्ट हो गये तथा उसका स्थान जैन तत्त्वज्ञान ने ले लिया और वह उनके जीवन में इतना तद्रप-समरस हो गया कि उनके वाणी और व्यवहार - सब कुछ जैन तत्त्वज्ञान के दर्पण सम बन गये । जीव, अजीव, मोक्ष, उसके उपाय, संसार उसका कारण, कर्म, कर्म के विविध स्वरूप, आध्यात्मिक विकासक्रम - गुणस्थान, नय अर्थात् चिंतन के दृष्टिबिंदु, अनेकांत (स्याद्वाद अर्थात् वस्तु को समग्र रूप से स्पर्श करनेवाली दृष्टि), जगत का संपूर्ण स्वरूप, ईश्वर, उसका एकत्व या अनेकत्व, उसका व्यापकत्व या देहपरिमितत्त्व इत्यादि तत्त्वज्ञान के प्रदेश में आनेवाले अनेक मुद्दों की उन्होंने अनेक बार चर्चा की है, या यह कहें कि इनका समस्त - संपूर्ण साहित्य केवल ऐसी चर्चाओं से व्याप्त है। उसमें आरंभ से अंत तक हम केवल जैन दृष्टि ही देखते हैं। उन्होंने इन सभी तत्त्वोंविषयों के संबंध में गहन एवं वेधक चर्चा की है परंतु वह केवल जैन दृष्टि पर अवलंबित तथा जैन दृष्टि की पुष्टि हो उस प्रकार से ही, कोई एक जैन धर्मगुरु करें उसी प्रकार से। अंतर केवल इतना ही है कि जैन धर्म की रूढीगत सीमाओं में परिमित - बद्ध न रहकर वे समग्र जैन शास्त्र को स्पर्श करते हए चलते हैं। जैन तत्त्वज्ञान के संस्कार उनकी अंतरात्मा में इतने दृढ़ हो चुके हैं कि ऐसा कोई भी प्रसंग उपस्थित होने पर तुलना करते हुए वैदिक आदि तत्त्वज्ञानों को अपनी समझ के अनुसार वे खुले मन से 'अपूर्ण' बताते हैं । __उनके लेखों को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने वेदानुगामी दर्शनों से संबंधित ग्रंथों का अध्ययन किया है। फिर भी आज तक मेरे मन पर यही (छाप) असर रहा है कि वैदिक या बौद्ध दर्शन के मूल ग्रंथों का अध्ययन करने का अवसर उनकों मिला नहीं है । तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो मौलिक एवं उत्तरावर्ती जैन साहित्य का जितना अध्ययन-मनन उन्होंने किया है उससे बहुत कम अध्ययनमनन उन्होंने कुल मिलाके अन्य सभी दर्शनों का किया है। स्वतंत्र ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि मुख्यतः जैन परंपरा में चली आ रही मान्यता के अनुसार जैन दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन के संबंध में उन्होने चिंतन किया है । इस कारण से ही एक