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जैन तत्त्वज्ञान : जैन दर्शन
भी वह ईश्वरतत्त्व की मान्यता रखता है और उसकी उपासना भी स्वीकार करता है । जो जो जीवात्मा कर्मवासनाओं से पूर्ण रूप से मुक्त हुए वे सारे ही समानभाव से ईश्वर हैं। उनका आदर्श सन्मुख रखकर अपने में निहित वैसी ही पूर्ण शक्ति को प्रकट करना यह जैन उपासना का ध्येय है। जैसे शांकर वेदांत मानता है कि जीव स्वयं ही ब्रह्म है, वैसे जैनदर्शन कहता है कि जीव स्वयं ही ईश्वर या परमात्मा है। वेदांत दर्शन अनुसार जीव का ब्रह्मभाव अविद्या से आवृत्त है और अविद्या दूर होने पर अनुभव में आता है, वैसे जैनदर्शन अनुसार जीव का परमात्मभाव आवृत्त है और उस आवरण के दूर होने पर वह पूर्णरूप से अनुभव में आता है। इस विषय में वास्तविक रूप में जैन और वेदांत के बीच व्यक्ति बहुत्व सिवा कोई भी भेद नहीं है।
(ख) जैन शास्त्र में जो सात तत्त्व कहे हुए हैं उनमें से मूल जीव और अजीव इन दो तत्त्वों के विषय में ऊपर तुलना की। अब शेष वास्तव में पांचमें से चार तत्त्व ही रहते हैं। ये चार तत्त्व जीवनशोधन विषयक अर्थात् आध्यात्मिक विकास क्रमसम्बन्धित हैं, जिन्हें चारित्रीय तत्त्व भी कहा जा सकता है। बंध, आश्रव, संवर और मोक्ष ये चार तत्त्व हैं। इन तत्त्वों को बौद्ध शास्त्रों में अनुक्रम से दुःख, दुःखहेतु, निर्वाणमार्ग और निर्वाण - इन चार आर्यसत्यों के रूप में वर्णित किया गया है। सांख्य और योग शास्त्र में उन्हें ही हेय, हेयहेतु, हानोपाय और हान कहकर चतुर्व्यूह के रूप में वर्णित किया गया है। न्याय और वैशेषिक दर्शन में भी वही वस्तु संसार, मिथ्याज्ञान, सम्यक् ज्ञान और अपवर्ग के नाम देकर वर्णित की गई है। वेदांत दर्शन में संसार, अविद्या, ब्रह्म साक्षात्कार और ब्रह्म भावना नाम से वही वस्तु दर्शित की गई है।
जैन दर्शन में बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा की तीन संक्षिप्त भूमिकाओं को थोड़ी विस्तृत कर चौदह भूमिका के रूप में भी वर्णित की गईं हैं, जो जैन परम्परा गुणस्थान के नाम से ज्ञात है। योगवासिष्ठ जैसे वेदान्त के ग्रन्थों में भी सात अज्ञान की और सात ज्ञान की इस प्रकार चौदह आत्मिक भूमिकाओं का वर्णन हैं। सांख्य -योगदर्शन की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध ये पांच चित्त भूमिकाएँ भी इन्हीं चौदह भूमिकाओं का संक्षिप्त वर्गीकरण मात्र हैं। बौद्ध दर्शन में भी उसी आध्यात्मिक विकासक्रम को पृथग्जन, सोतापन्न आदि के रूप में छः भूमिकाओं में विभाजित कर वर्णित किया गया है। इस प्रकार हम सारे ही भारतीय दर्शनों में संसार