Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 129
________________ जैन संस्कृति का हृदय ९१ जैन और बौद्ध सम्प्रदाय इस निर्ग्रन्थ या जैन सम्प्रदाय में ऊपर सूचित निर्वृत्ति-धर्म के सब लक्षण बहुधा थे ही पर इसमें ऋषभ आदि पूर्व कालीन त्याग़ी महापुरुषों के द्वारा तथा अन्त में ज्ञातपुत्र महावीर के द्वारा विचार और आचारगत ऐसी छोटी-बड़ी अनेक विशेषताएँ आई थीं व स्थिर हो गई थीं कि जिनसे ज्ञातपुत्र - महावीर पोषित यह सम्प्रदाय दूसरे निवृत्तिगामी सम्प्रदायों से खास जुदा रूप धारण किये हुए था। यहाँ तक कि यह जैन सम्प्रदाय बौद्ध सम्प्रदाय से भी खास फर्क रखता था । महावीर और बुद्ध न केवल समकालीन ही थे बल्कि वे बहुधा एक ही प्रदेश में विचरने वाले तथा समान और समकक्ष अनुयायियों को एक ही भाषा में उपदेश करते थे। दोनों के मुख्य उद्देश्य में कोई अन्तर नहीं था फिर भी महावीर पोषित और बुद्धसंचालित सम्प्रदायों में शुरू से ही खास अन्तर रहा जो ज्ञातव्य है । बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध को ही आदर्श रूप से पूजता है तथा बुद्ध के ही उपदेशों का आदर करता है जब कि जैन सम्प्रदाय महावीर आदि को इष्ट देव मानकर उन्हीं के वचनों को मान्य रखता है। बौद्ध चित्तशुद्धि के लिए ध्यान और मानसिक संयम पर जितना ज़ोर देते हैं उतना ज़ोर बाह्य तप और देहदमन पर नहीं। जैन ध्यान और मानसिक संयम के अलावा देहदमन पर भी अधिक ज़ोर देते रहे । बुद्ध का जीवन जितना लोगों में हिलनेमिलनेवाला तथा उनके उपदेश जितने अधिक सीधे-साधे लोकसेवागामी हैं वैसा महावीर का जीवन तथा उपदेश नहीं हैं। बौद्ध अनगार की बाह्यचर्या उतनी नियन्त्रित नहीं रही जितनी जैन अनगारों की। इसके सिवाय और भी अनेक विशेषताएँ हैं जिनके कारण बौद्ध सम्प्रदाय भारत के समुद्र और पर्वतों की सीमा लांघकर उस पुराने समय में भी अनेक भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी, सभ्य - असभ्य जातियों में दूरदूर तक फैला और करोड़ों अभारतियों ने भी बौद्ध आचार-विचार को अपनेअपने ढंग से अपनी-अपनी भाषा में उतारा वा अपनाया जब कि जैन सम्प्रदाय के विषय में ऐसा नहीं हुआ। यद्यपि जैन संप्रदाय ने भारत के बाहर स्थान नहीं जमाया फिर भी वह भारत के दूरवर्ती सब भागों में धीरे-धीरे न केवल फैल ही गया बल्कि उसने अपनी कुछ खास विशेषताओं की छाप प्रायः भारत के सभी भागों पर थोडी बहुत जरूर डाली। जैसे-जैसे जैन संप्रदाय पूर्व से उत्तर और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर फैलता गया वैसे-वैसे उसे प्रवर्तक-धर्म वाले तथा निवृत्ति-पंथी अन्य संप्रदायों के साथ थोड़े

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