Book Title: Prabandh kosha
Author(s): Rajshekharsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Gyanpith

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Page 17
________________ प्रबन्धकोश है। राजशेखर सूरिकी यह कृति, कितनेएक अंशोंमें, अपने पहलेके उन तीनों ग्रन्थोंका ऋण धारण करती है। इसमें के कितनेएक प्रकरण तो उक्त ग्रन्थों में से शब्दशः उद्धृत कर लिये गये हैं। कितनेएक थोडा बहुत भाषा या रचनामें परिवर्तन कर लिख लिये गये हैं। कितनेएक पद्यसे गद्यमें अवतारित किये गये हैं। और, कुछ प्रबन्ध, स्वतंत्र ढंगसे, मौलिक रूपमें भी गूंथे गये हैं । यहां पर, थोडीसी तुलना कर देखनेसे इस कथनका स्पष्ट दिग्दर्शन हो सकेगा। ६३. प्रभावकचरित और प्रबन्धकोश प्रभावकचरितके कर्ताका प्रधान उद्देश, अपने समयसे पहले हो जानेवाले जैनधर्मके उन प्रभावशाली आचायाँका चरित-गुम्फन करनेका है जिन्होंने अपने चारित्र-बल या विद्या-बल से जैन धर्मका विशेष गौरव बढाया है, और जैन इतिहासको उज्वल बनाया है। आर्य वज्रस्वामी [परम्परागत मान्यताके मुताबिक विक्रमकी प्रथम शताब्दी] से लेकर आचार्य हेमचन्द्र [विक्रमकी १३ वीं शताब्दीका मध्यकाल ] तकके ऐसे २२ आचार्योंका उसमें चरितवर्णन है । प्रबन्धकोशकारने उन २२ आचार्यों में से ९ आचार्योंके प्रबन्ध अपने संग्रहमें सङ्कलित किये हैं । यद्यपि, प्रभावकचरितके सिवा, इन आचार्योंके चरित-विषयक और भी कोई संग्रह राजशेखरके सम्मुख होगा जिसमें से उन्होंने अपने प्रबन्धोंके लिये कितनीक सामग्री संगृहीत की है-क्यों कि इन आचार्योंके चरितोंमें कई बातें ऐसी हैं जो प्रभावकचरितमें नहीं मिलतीं; और कई बातें, जो प्रभावकचरितमें हैं, वे इसमें नहीं मिलती-तथापि इसकी प्रधान सामग्री उसी ग्रन्थ परसे एकत्रित की गई मालूम देती है। इन ९ आचार्योंके सिवा, प्रभावकचरितमें, प्रस्तुत कोशमें की अन्य व्यक्तियोंका कोई विशेष निर्देश नहीं है। सिर्फ, सातवाहन और नागार्जुनका कुछ वर्णन पादलिप्त सूरिके चरितान्तर्गत मिलता है, और कुछ प्रसङ्ग विक्रमादित्यके विषयका वृद्धवादी सूरिके प्रबन्धमें मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि राजशेखर सूरिने प्रभावकचरितमें से उतनी वस्तु नहीं ली जितनी प्रबन्धचिन्तामणिमें से ली है। ६४. प्रबन्धचिन्तामणि और प्रबन्धकोश __ प्रबन्धकोश-वर्णित व्यक्तियोंमें से भद्रबाहु (१) वृद्धवादी (६), मल्लवादी (७), हेमचन्द्र (१०), सातवाहन (१५), विक्रमादित्य (१७), नागार्जुन (१८), लक्ष्मणसेन (२०), आभड (२३), और वस्तुपाल (२४)-इस प्रकार ४ आचार्य, ४ राजा और २ राजमान्य जैनगृहस्थ-कुल १० व्यक्तियोंका वर्णन प्रबन्धचिन्तामणिमें मिलता है । प्रबन्धचिन्तामणिका वह वर्णन कुछ संक्षेपमें और सामासिक शैलीमें है। प्रबन्धकोशका कुछ विस्तृत और विश्लेषात्मक पद्धतिमें है। बहुतसी बातें नई भी हैं। हेमचन्द्र सूरिके प्रबन्धमें, एक जगह, ग्रन्थकार स्वयं कहते हैं कि-'इन आचार्यके जीवन-सम्बन्धमें जो जो बातें प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थमें लिखी गई हैं, उनका वर्णन हम यहां पर नहीं करना चाहते। ऐसा करना चर्वित-चर्वण मात्र होगा। हम यहां पर उसके अतिरिक्त कुछ नवीन प्रबन्ध ही कहना चाहते हैं।' यद्यपि, हेमचन्द्र सूरिके प्रबन्धमें, ऐतिहासिक दृष्टिसे विशेष महत्त्वकी मालूम दे वैसी कोई बातें, इस ग्रन्थमें नहीं पाई जातीं; तथापि, वस्तुपालप्रबन्धमें, प्रबन्धचिन्तामणिकी अपेक्षा अनेक विशिष्ट और विश्वसनीय बातोंका सङ्कलन किया हुआ जरूर मिलता है। ६५. विविधतीर्थकल्प और प्रवन्धकोश __ प्रभावकचरित और प्रबन्धचिन्तामणिमें से जितनी सामग्री प्रबन्धकोश में ली गई है उससे कहीं अधिक वस्तु विविधतीर्थकल्पमें से ली गई है। उक्त दो ग्रन्थों में से तो प्रधानतया वस्तु और वक्तव्य-ही-का संग्रह किया गया है। लेकिन तीर्थकल्पमें से तो कुछ पूरे प्रकरण या प्रबन्ध ही, शब्दशः ज्यों के त्यों, उद्धृत कर लिये गये हैं। सातवाहनप्रबन्ध, वङ्कचूलप्रबन्ध और नागार्जुनप्रबन्ध-ये तीनों प्रकरण तीर्थकल्पकी पूरी नकल हैं । उसमें सातवाहनका प्रकरण प्रतिष्ठान 1 देखो, पृष्ठ ४७, प्रकरण ६५७, पंक्ति १२-१६ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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