Book Title: Nandanvan Kalpataru 2007 00 SrNo 19
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 15
________________ जयत्यमदीर्घिकाजलजजालगर्वापहप्रसृत्वरविलोचनप्रशमितोग्रपापज्वरः । प्रमोहरजनीशतक्षपणवाक्यभानूदयः, प्रभूतकरुणारसप्रसरणः स चिन्तामणिः ॥५॥ जयत्यवनिसंस्थिताखिलकुसूष्टिवादप्रथानिरस्तभविसन्मतिप्रबलदानकल्पद्रुमः ॥ प्रभीषणभयार्णवप्रबलकर्णधारक्रमः । प्रभूतकरुणारसप्रसरणः स चिन्तामणिः ॥६॥ जयत्यसमसद्युतिप्रकरसारपीयूषकप्रसिञ्चनकृतावनिप्रबलशान्तिसङ्गक्रमः ॥ सुधासमसमुच्छलद्वचनजातवेगोद्धरः। प्रभूतकणारसप्रसरणः स चिन्तामणिः ॥७॥ जयत्यजितविक्रमप्रवरदन्तवेगोद्भवत् समग्रकलुषद्रुमोद्दलनदृप्तदन्तावलः ॥ समस्तभुवनोदयप्रथनवैनतेयारवः प्रभूतकरुणारसप्रसरणः स चिन्तामणिः ॥८॥ जयत्युरुगुणावलिप्रसितचित्रमुक्ताफलप्रकाशिचरणावगत्युदितशुद्धजैनागमः ॥ अचिन्त्यचरितोज्ज्वलज्ज्वलनभासपक्षच्छविः प्रभूतकरुणारसप्रसरणः स चिन्तामणिः ॥९॥ (अनुष्टुब्बृतेन स्तुत्यनामगर्भो बीजपूरक प्रबन्धः) जय चिन्ताव्रजोद्धार ! जय तापहरो र ! ॥ जय मन्युप्रसंहार ! जयोष्णिक्स्तु तसंवर ! ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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