Book Title: Nandanvan Kalpataru 2007 00 SrNo 19
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
9994
bo
20-100
ON
%0
D8-64Gter
9999
॥२४॥
॥२५॥
||२६.'
॥२७॥
एअस पेमबंधो, झिज्जइ इय देवसम्मबोहटुं । गोयमसामी जेणं, पट्ठविओ तं पहुं वंदे गिहवासे वरिसाइं, तीसं पक्खाहिए य सड्डे य। जाव दुवालसवरिसे, जस्स य छउमत्थपरियाओ तेरसपक्खोणाई, तीसं वासाइ केवलित्तेणं । विहरित्ता सव्वाउं, बावत्तरिवासपरिमाणं पालित्ताऽऽइमपक्खे, कत्तिअमासे य चरिमजामद्धे । साइपवरणक्खत्ते, कयपज्जंकासणो सामी जीवियवड्डणपण्हे, अवि सक्का णो कयावि वड्डेडं । जिणया आउयकम्मं, इय कहिऊणं समाहाणं जा सोलसपहराई, दचंतिमदेसणं भवियणाणं । किच्चा जोगनिरोहं, सेलेसीभावसंपण्णो सेसाघाइविणासा, साइअणंतेण भंगसमयेणं । पत्तो जो निव्वाणं, तं वीरपहुं सया वंदे कयमयणदावसंति, मणमोरघणं पसण्णमुहकमलं । दसणमलपक्खाले, जलधारासंनिहं सुहयं दुरियतिमिररवितुल्लं, पयंडयरविग्घमेहवाउसमं । जीवंतसामिबिंबं, पणमंताणं भयाभावो
॥२८॥
॥२९॥
॥३०॥
॥३१॥
॥३२॥
DBOOR
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138