Book Title: Nandanvan Kalpataru 2007 00 SrNo 19
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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अणुहविय सुक्कपक्खे, आसाढे छट्ठवासरे धण्णे। तम्हा चुओ समाणो, तिण्णाणणिबद्धजिणणामो माहणकुंडग्गामे, सयवरिसाउस्स उसहदत्तस्स । गिहिणी देवाणंदा, तीए कुच्छिसि आयाओ बासीइदिणाई जा, तत्थ ठियं वंदिऊण सक्किंदे।। हरिणेगमेसितियसं, कम्मबलच्छेरगं णच्चा आणवए तेण तओ, आसिणबहुले य तेरसीदियहे । काउं गब्भविणिमयं, तिसलाकुच्छिसि साहरिओ जो चित्तसुक्कपक्खे, जाओ सुहतेरसीदिणे पवरे । दिक्खा जेणं गहिया, मग्गसिरे बहुलदसमीए बारसवासाइ तहा, तेरसपक्खे सुराइउवसग्गे । सहिअ खमाभावेणं, चरिअ तवं जंभियग्गामे गोदोहिआसणेणं, पहरतिगे उज्जुवालियातीरे । हत्थुत्तरासुरिक्खे, णिज्जलछटुप्पमोएणं झाणंतरियासमए, जेणं वइसाहसुद्धदसमीए । लद्धं केवलनाणं, तं वीरपहुं सया वंदे तह मज्झिमपावाए, केवलिणिक्कारसीइ जेण वरं । महसेणवणे तित्थं, पयट्टियं जोगखेमदयं सिरिइंदभूइपमुहा, जेणं संदिक्खिया सपरिवारा । अइसयलद्धिसमेयं, तं वीरपहुं सया वंदे
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