Book Title: Nandanvan Kalpataru 2007 00 SrNo 19
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 16
________________ (शार्दूलविक्रीडितवृत्तेन कविनामगर्भश्चक्रबन्धः) यः सौख्यं विदधाति भव्यभविषु प्रौढप्रतापोदयः शोकं हन्ति स सर्वभूतभयसंहारो विहारो गिराम् ॥ विज्ञानप्रसुवां सुरेन्द्रभरसंपूज्यो महर्षिः सदा जन्तुक्रोधशमः शिवाय भविनां भूयात् स चिन्तामणिः ॥११॥ श्रीनेमीश्वरसूरिराज्यसमये भव्यारविन्देनभाविद्वत्कै रवचन्द्रिका समजनि प्रौढप्रभावरमृतेः । तस्यैवाऽतुलतेजसो मम गुरोरेषा स्तुतिः पावनी, यावद्भूमिरतो धराधरधरा तावज्जनैः पठ्यताम् ॥१२॥ एना पार्श्वगुणप्रवाहकणिकाबोधेन धर्मद्रुमप्रोल्लासामलशान्तिवारिविसरप्रोद्वर्षिणी मानवाः !। अज्ञेनाऽपि मया कृतां भणत भोः किं वर्धितः पावको, मूढेनाऽपि न तार्णकूटदहने प्रौढप्रभावो भवेत् ॥१३॥ एषा यशोविजयसञ्जकृता तनोतु, मोदं नवा बुधजनस्य किमस्ति तेन । श्रीपार्श्वपादयुगले तु समर्प्यमाणा, पापानि सर्वभविनां निहनिष्यतीह ॥१४॥ श्रीनेमिसूरिपादाब्जप्रभावविहिता स्तुतिः । पठ्यमाना सदा भूयात् सर्वकल्याणकारिणी ॥१५॥ निजस्फुरद्वाग्वज्रविदारितपाखण्डप्रचण्डखर्वगर्वपर्वतमहोपदेशामृतसेकसंवर्द्धित भव्यभविहृदयगमातिशर्मदजिनोपज्ञसुज्ञानदानसिद्धान्तसारकारुण्यलताचार्यवर्यश्रीमद्विजयनेभिसूरीश्वरपादपङ्कजमिलिन्दयशोविजयमुनिना विरचितं प्रथमैकवचनान्तपदसन्दर्भितश्रीचिन्तामणिपाश्र्वाष्टकं स्तोत्रं समाप्तम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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