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में चारित्र धर्म का, मध्यान्ह में राज धर्म का और अपराह्न में अग्नि का विच्छेद होगा।
इक्कीस हजार वर्ष का दषमाकाल पूरा होकर इतने ही वर्षों का दष्षमद प्षमा नामक छठा श्रारा लगेगा। तब धर्म नीति, राजनीति आदि के अभाव में लोक अनाथ होंगे। इस दषमदष्षमा अरक के स्वरूप के सम्बन्ध में इन्द्रभूति गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने इसका जो वर्णन किया है, और उस समय के मनुष्य की दशा का जो चित्र खींचा है, वह भगवती सूत्र के सातवें शतक के छठे उद्देशक से हम यहां अक्षरशः उद्धृ त करते हैं।
इन्द्रभूति गौतम ने पूछा-भगवन् ! अवसर्पिणी समा के दुष्पम दुष्षमा अरक के पूर्णरूप से लग जाने पर जम्बूद्वीप के भारतवर्ष की क्या अवस्था होगी।
महावीर-गौतम ! उस समय का भारत हाहाकार, आर्तनाद और कोलाहलमय होगा। विषमकाल के प्रभाव से कठोर, भयङ्कर और असह्य हवा के ववण्डर उठेगे, और आंधियां चलेंगी जिनसे सब दिशायें धूमिल, रजस्वला और अन्धकार मय हो जायेंगी । समय की रूक्षता के वश ऋतुएं विकृत हो जायेंगी, चन्द्र अधिक शीत फैंकेंगे, सूर्य अधिक गर्मी करेंगे।
उस समय जोरदार बिजलियां चमकेंगी, और प्रचण्डपवन के साथ मूसलधार पानी बरसेगा, जिसका जल अरस, विरस, खारा,
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