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सपरिकर्म होता है । इस अनशन वाला अपनी शारीरिक शुश्रूषा करा सकता है । इंगिनी मरण अनशन वाला परिकर्म नहीं कराता, शक्ति रहते वह स्वयं करवट बदलना आदि कर सकता है । पादपोपगमन अनशन धारी चरम शरीर धारी होता है । वह जिस आसन से अनशन प्रारम्भ करता है उसी आसन में वृक्ष की तरह स्थिर रहता है। खड़ा हो तो बैठ नहीं सकता, सोया हुआ हो तो करवट नहीं बदल सकता । जैसे वृक्ष पवन के ककोर से गिर जाने पर फिर स्वयं अपनी स्थिति को बदल नहीं सकता, उसी प्रकार पादपोपगमन मरण करने वाले को देव, मनुष्य, अथवा तिर्यञ्च अनशन स्थान से उठाकर कहीं दूर फेंक देंगे तो उसी स्थिति में पड़ा रहेगा जो उसके गिरने पर हुई हो ।
भगवान् महावीर के ग्यारह गरणधर इसी प्रकार का पाद पोपगमन करके राजगृह नगर के गुणशीलक उद्यान में निर्वाण प्राप्त हुए थे, और उनके अन्य सैकड़ों शिष्य राजगृह के वैभार, विपुल आदि पर्वतों पर इस अनशन से मोक्ष प्राप्त हुए थे 1
जैन शास्त्रानुसार यह पादपापगमन अनशन वे ही श्रमण कर सकते हैं, जिनका संघयन वज्रऋषभनाराच हो और जिनका शरोर अन्तिम हो ।
भक्त परिज्ञा और इंगिनी मरण अनशन करने वाले उक्त प्रकार के संघयन वाले भी हो सकते हैं, और इससे हीन संघयन वाले भी । इन दो अनशनों से शरीर त्यागने वाले श्रमरण प्रायः स्वर्गगामी होते हैं ।
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