Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 530
________________ ( ४७६ ) उपयुक्त दान प्रशंसा बुद्ध ने स्वयं संयत भाषा में की है, परन्तु इनके भिक्षु अपने पूज्य तथागत को दान प्रशंसा का अनुसरण करते हुए कहां तक पहुँचे हैं, यह सचमुच दर्शनीय प्रसङ्ग है । यहां हम "विमान वत्थु' के कुछ उद्धरण देंगे। जिससे पाठक गण जान सकेंगे, कि बौद्ध भिक्षु अपने उपयोग में आने वाले पदार्थ दानों की किस प्रकार से बढ़ा चढ़ा कर प्रशंसा करते थे। यो अन्धकारम्हि तिमांसकायं, पदीपकालम्हि ददाति दीपं । उपज्जति जोतिरसं विमानं, पहुतमल्ल वहुपुण्डरीकं ॥७॥ (विमान वत्थु पृ०७) अर्थ-जो अन्धकार में दीपक काल में भितुओं के स्थान पर अन्धकार नाशक दीपक रखता है, वह अनेक पुष्पमालाओं से शोभित और श्वेतकमलों की रचना से अलंकृत ज्योतीरस विमान में उत्पन्न होता है। नारी सबङ्ग कल्याणी, भत्तु च नोमदस्सिका। एतस्सा चामदानस्स, कलं नाग्चंति सोलसीं ॥७॥ सतं कजा सहस्सानि, प्रामुक्त मणिकुण्डला । एतस्सा चामदानस्स, कलं नाग्चंति सोलसीं ॥८॥ सतं हेमवता नागा, ईसा दन्ता उरूल्हवा । सुवर्णकच्छा मातंगा, हेमकप्प निवाससा ॥ एतस्सा चामदानस्स, कलं नाग्चंति सोलसी ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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