Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 542
________________ ( ४६१ ) निहच्च जानुवंदित्वा, सम्मुखापञ्जलि अहं । एहि भद्दति खवच, सा मे आसूप सम्पदा ॥१०॥ चिएणा अंगा च मगधा, वज्जी काशी च कोशला । अनणा पण्णासवस्सानि, रपिंडं अभुजिहं ॥११॥ पुजं च पसविं वहु संपञ्जो वताय मुपासको । जो भदाय चीवरमदासि, मुत्ताय सव्वगन्धेहि ॥१११॥ ( भद्दा पुराणा निग० पृ० ११ ) - अर्थ-केशों का लुश्चन करने वाली. मलधारिणी, एकवस्त्र धारण करने वाली, नगर में भिक्षावृत्ति करने वालो, अवद्य को पाप मानने वाली, और पाप में निष्पापता देखने वाली, दिन को विहार करने वाली, ऐसी मैं एक दिन अपने उपाश्रय स्थान से निकल कर गृध्रकूट पर्वत पर गई, जहां पर संघ के साथ रहे हुए पापरज मुक्त बुद्ध को देखा। मैं घुटने टेक कर बुद्ध को वन्दन करके दोनों हाथ जोड़ उनके सम्मुख खड़ी रही, उस समय हे भद्रे ! "आ" यह कहा और मुझे उपसम्पदा दे दी। अङ्ग, मगध, विदेह काशी, कोशल आदि देशों में पञ्चास वर्ष तक भ्रमण कर के जो राष्ट्र पिण्ड भोगा था, उससे मैं उऋण हुई । वहां जो साज्ञ उपासक था, उसने भद्रा को वस्त्र दान देकर बहुत पुण्य उपार्जन किया । उपयुक्त गाथाओं के अन्त में “भद्दा पुराण निगण्ठो” ऐसा नाम लिखा गया है, कि भद्दा पहले निर्ग्रन्थ श्रमणी रह कर वह बुद्ध के हाथ से बौद्ध भिक्षुणी बनी थी। भद्रा के आत्म निरूपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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