Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 546
________________ ( ४६५ ) और स्वास्थ्य साधारण होने से उनके लिये अमुक प्रकार का लघु भोजन तैयार होना आवश्यक है। इस प्रकार के इशारे बिना चुन्द उनके लिये अन्न का मृदु भोजन तैयार कराये यह मम्भवित नहीं लगता । वंश अंकुर और अहिच्छत्रक से चुन्द अपने पूज्य पुरुष के लिये भोजन तैयार कराये यह बात बहुत ही अयोग्य है। अब रही रसायन विधि की बात सो चुन्द स्वयं बुद्ध के लिये रसायन विधि से तैयार करवा लेता और न बुद्ध ही अपने निर्बल स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उस रसायनात्मक गरिष्ट भोजन को खाना पसन्द करते । जहां तक हमारा खयाल है बुद्ध का वह भोजन न मांस था न रसायन आदि किन्तु वह था बाहर कन्द का शिरा । आज भी भारत के हिन्दु उपवास के दिनों में सूकर कन्द को सेक कर अथवा कच्चे का फलाहार करते हैं, पर पेट भर नहीं खाते । यह बड़ा मधुर कन्द होता है सूअर इसको देखा नहीं छोड़ते. इसका नाम सूकर कन्द होने पर भी लोग इसे सकर कन्द के नाम से पहचानते हैं। चुन्द ने इसको स्वादु होने के कारण से ही इसका भोजन बुद्ध के लिये अलग तैयार कर वाया था, परन्तु चुन्द को क्या मालुम कि यह हल्का खाना भी घृत के मिलने से बड़ा गरिष्ठ बन जाता है। उसने तो अपनी बुद्धि से तो अच्छा ही किया था, परन्तु इस भोजन का परिणाम बुद्ध के लिये प्राणघातक हुआ । आज भी अनुभवी वैद्यजन ऐसे भोजनों को दुर्बल शरीर वालों के लिये वर्जित करते हैं, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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