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( ५०१ ) बुद्ध उससे बिमार पड़े, न भिक्षुओं को उन्होंने वैसा मांस खाने से रोका । इस से निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि सूकर मद्दव न सूअर का मांस था, न अन्य टीकाकारों के बताये हुए खाने, वह गर्म चीजें डाल कर घृत शक्कर से बनाया हुआ सूकर कन्द का लेह्य मात्र था । बुद्ध को उसके खाने से तात्कालिक दुष्परिणाम मालूम हुआ और शेष बचे भाग को उन्होंने जमीन दोज करबा दिया। बुद्ध निर्वाण के बाद बौद्ध भिक्षुषों की स्थिति
विंशति निपात में पारापर्य स्थविर कहते हैंअञ्जथा लोकनार्थाम, तिढते पुरिसुत्तमे। इरियं आसि भिखूनं, अञथा दानि दिस्सते॥२१॥ सीतवात परित्तानं, हिरि कोपीन छादनं । मत्तट्टियं अभुजि सु, संतुट्टा इतरीतरे ॥२२॥ पणीतं यदि वा लूखं अप्पं वा यदि वा बहु।
यापनत्थं अभुजिंसु, अगिद्धा नाधिमुज्झिता ॥२३॥ अर्थः-हे पुरुषोत्तम ! लोकनाथ बुद्ध के जीवित रहते भिक्षुओं की विहारचर्या और थी, और आज कल और ही दीखती है। उस समय शीत तथा ताप के रक्षार्थ तथा लज्जा निवारणार्थ वस्त्र रखते थे, और भिनु भिक्षुणी मात्रायुक्त भोजन करते थे उस समय के मितु स्निग्ध अथवा रूक्ष अल्प मात्रा में वा पर्याप्त मात्रा में
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