Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 554
________________ ( ५०३ ) दन्तधावन, कपित्थ, खाद्य पुष्पों का उपयोग करते हैं, और पर्याप्त भिक्षा मिल जाने पर भी आम, आमले आदि ग्रहण करते हैं। नेकतिका वञ्चनिका, कूटसक्खी अवाटुका । वहूहि परिकप्पेहि, आमिसं परि अँजिरे ॥६४०॥ लेस कप्पे परियाये, परिकप्पेनुधाविता । जिविकत्था उपायेन, संकटंति वहुं धनं ॥६४१॥ अर्थः-कपटी, ठगारे कूटसाक्षी देने वाले अल्पभाषक अनेक उपायों से आमिष का भोजन करते हैं। अांशिक कल्प की छूट मिलने पर सम्पूर्ण कल्प की तरफ दौड़ते हैं और जीविका के लिये उपाय द्वारा बहुतेरा धन खींचते हैं। भावी बौद्ध संघ के सम्बन्ध में पुस्सथेर की भविष्य वाणी थेर गाथा के तिसनिपात में पुस्सथेर कहते हैंवहु आदी नवा लोके, उपजिसंति नागते । सुदेसितं इम्मं धम्मं, किलिसिस्संति दुम्मती ॥६५४॥ गुण हीनापि संघम्हि, वोहरंति विसारदा । बलवंतो भविस्संति, मुखरा अस्सुताविनो ॥१५॥ गुणवंतोऽपि संघम्हि, ओहरन्ता यथत्थतो । दुबला ते भविस्संति, हिरिमना अनस्थिका ॥५६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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