Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 555
________________ रजतं जातरूपं, खेत्तं वत्थु अजेलकम् । दासीदार दुम्मेधा, सादियिस्संति नागते ।।९५७॥ उज्मान सञ्जिनो वाला, सीलेसु असमाहिता । उन्नहा विचरिस्संति, कलहाभिरता मगा ॥६५८॥ अर्थः-बहुत दोष वाले भिक्षु आगामी काल में इस लोक में उत्पन्न होंगे जो दुर्बुद्धि भिनु बुद्ध द्वारा सुदेशित इस धर्म को क्लोशित करेंगे, गुण रहित होकर भी होशियार, वाचाल, प्राणपरितापी भिक्षु बलवान बनेंगे और संघ में व्यवहार चलायेंगे। गुणवान् होते हुए भी संघ में यथास्थित व्यवहार चलाने वाले भिक्षु बलहीन, लज्जित और अप्रयोजनीय बनेंगे। चांदी, सोना, क्षेत्र, मकान, बकरे, मेंढ़े और दासी दासों का स्वीकार करके आगामी काल में दुर्बुद्धि भिक्षु उनसे लाभ उठायेंगे। भविष्य में अज्ञानी शील के गुणों में असमाधियुक्त और सच्चे धर्म मार्ग से भ्रष्ट बने हुए भी भिक्षु बड़े ध्यानी का ढोंग कर क्लेश में तत्पर रहते हुए विचरेंगे । अजे गुच्छं विमुहि, सुरचं अरहद्धजं । जिगुच्छिरसंति कासावं, अोदातेसु समुच्छिता ॥६६१॥ अर्थः--विमुक्तों द्वारा पाहत रक्त और काषाय बुद्धध्वज की जुगुप्सा करेंगे और उजल वस्त्र धारण करने को उत्कण्ठित होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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