Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 538
________________ उपर्युक्त जो भिक्षुओं की संख्या दी है, उस पर हम टीका टिप्पणी करना नहीं चाहते । पाठक वर्ग से केवल यह प्रश्न करना चाहते हैं कि तत्कालीन भारतवर्ष की जनसंख्या का आंकडा भी अस्सी करोड का था या नहीं इसका कोई निर्णय होतो कहिए । हम जानना चाहते हैं “पाली ग्रन्थ" में विपस्सी बुद्ध से लेकर गौतम तक सात बुद्ध होना लिखा है, तब "बुद्धवंशो" में तण्हंकर १ मेघंकर २, शरणंकर ३, दीपंकर ४, कौण्डिन्यं ५, मंगल ६, सुमनस ७, रैवत ८, शोभित ६, अनोमदस्सी १०, पदुम ११, नारद १२, पदुमोत्तर १३, सुमेध १४, सुजात १५, पियदस्सी १६, अत्थदस्सी १७, धम्मदस्सी १८, सिद्धार्थ १६, तिष्य २०, पुष्य २१, विपस्सी २२, सिक्खी २३, विश्वभू२४, ककुसंधो २५, कोणागम २६ कस्सप २७, गौतम २८, मैत्रेय २६, इन उनतीस बुद्धों की नामावली दी है। इसमें दीपङ्कर से लेकर गौतम बुद्ध तक के पचीस बुद्धों का शरीर, मान तथा आयुष्य का भी वर्णन कर दिया है यह सब हकीकत गौतम बुद्ध के मुख से कहलाई गई है । अन्त में गौतम अपने खुद के लिये कहते हैं अहं एतरहि बुद्धो गोतमो सक्य-बद्धनो । पधानं पद हित्वान पत्तो सम्बोधि उत्तमं ।। व्यामप्पभा सदा मह्यं सोलस हत्थ मुग्गतो। अप्पं वस्स सतं आयु, इदानेतरहि विज्जति ।। अर्थ-इस समय मैं गौतम बुद्ध हूँ मैं शाक्य कुलीन हूँ मैंने प्रधान पद का त्याग करके उत्तम सम्बोधि ज्ञान को प्राप्त किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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