Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 533
________________ ( ४८२ ) लोग पूछते-श्रमण के निमित्त रसोई बना कर उन्हें जिमाना चाहिए या नहीं ? तब दूसरे कहते जो मत्स्य मांस तक को नहीं छोड़ते उनको देने से क्या पुण्य होता होगा, इत्यादि एक दूसरे के विरोध में पूछी जाने वाली बातें सुनकर भगवान महावीर अपना सिद्धान्त व्यक्त करते हुए उनके प्रश्नों का उत्तर देते थे। जिसका संक्षिप्त निरूपण नीचे मुजब 'सूत्रकृताङ्ग" सूत्र में मिलता है भूयाई च समारम्भ, तमुद्दिसाय जं कडं । तारिसं तु न गिण्हेज्जा, अन्नपाणं सुसंजए ॥१४॥ पूड कम्मं न सेविज्जा, एस धम्मे वुसीम प्रो। यं किञ्चि अभिकं खेज्जा, सव्यसो तं न कप्पए ॥१५॥ हणंतं णाणुजाणेज्जा, आयगुने जिई दिए । ठाणाइ संति सहीणं, गामेसु नगरे सु वा ॥१६॥ तहागिरं समारब्भ, अत्थि पुण्णंति णो वए । अहवा णत्थि पुगणंति, एवमेयं महब्भयं ॥१७॥ दाणट्ठयाय ये पाणा, हम्मति तस थावरा । तेसिं सारक्खणट्टाए, तम्हा अथिति णो वये ॥१८॥ जेसि तं उवकप्पंति, अन्नपाणं तहा विहं । तेसिं लाभं तरायति, तम्हा णस्थिति णो क्ये ॥१६॥ जेय दाणं पसं संति, बहमिच्छति पाणिणं । जे य णं पडिसेहंति, वित्तिच्छेयं करंति ते ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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