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करण (सेका हुआ दाना), यावक (यव से बना खाद्य), पिण्याक (तिलों की खली ), शाक, छल. दुध, दही इत्यादि हिसा वर्जित सबरसोपेत भिना को ग्रहण करे । अति थम समुचय में कहा गया है.---- विष्णोन वेद्य-रांशुद्धं, मुनिभिर्भोज्यमुच्यते। अन्य देवस्य नवेद्य, मुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत् ॥ अर्थ-विष्णु के नैवेद्य से पवित्र बना अन्न मुनियों के ग्रहण करने योग्य होता है, यदि अन्य देव का नैवेद्य खाने में बाजाय तो चान्द्रायण तप से प्रायश्चित्त करे । मनु कहते है-- न चोत्पात-निमित्ताभ्यां, न नक्षत्राङ्ग-विद्यया । नानुशासनवादाभ्यां, भिक्षां लप्स्येत कर्हिचित् ।। अर्थ-निमित्त तथा उत्पातों के फल कथन द्वारा, नक्षत्र विद्या प्रयोग से, अङ्गविद्या के प्रयोग से अनुशासन ( आज्ञा ) करके और वाद विवाद कर कमी मिक्षा प्रायन करे। विधा कहते हैं
यदि भै समादाय, पयुषेद् योगवित्तमः । स पर्युषितदोषेण, भिक्षुर्भवति वैकमिः ।। अर्थ---यदि भिक्षा लाकर योगी उसे वासी रख ले, वह भिक्षु भक्षा वासी रखने के दोष से कृमि का भव पाता है।
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