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नामगोत्रादि चरणं, देशं वासं श्रुतं कुलम् । वयोवृत्तं व्रतं शीलं, ख्यापयेन्नैव सद्यतिः ।।
अर्थः-भिक्षा के लिये अथवा रहने के लिये बस्ती में प्रवेश करे और तीन दिन तक रहे, छोटे गांव में एक दिन, शहर में तीन दिन, कसबे में दो दिन, बड़े नगर में पांच दिन और वषा काल में वर्षावासार्थ पवित्र जल वाला बोग्य स्थान देखकर चार मास ठहरे। ___ यति सर्व प्राणियों को निजात्म समान देखता हुआ पृथ्विी पर चले, चलते समय अन्धवत् नीचे देखता हुआ, कुब्ज की तरह शिर को आगे नमाये हुए बधिर उन्मत्त मूक की तरह किसी तरफान न देता हुआ, किसी से भाषण न करता हुआ और अपने आत्मानन्द में मस्त हुआ चले ।
उत्तम भिक्षु अपने नाम, गोत्र, उत्तम आचरण, देश, निवास स्थान, ज्ञान, कुल, अवस्था, वृत्तान्त, व्रत और शील इत्यादि बातों को लोगों के आगे प्रकाशित न करे। यम कहते हैंजले जीवा स्थले जीवा, आकाशे जीवमालिनी। जीव माला कुले लोके, वर्षास्वेका संवसेत् ।।
अर्थः-वर्षाकाल में जल में तथा स्थल में जीव अधिक होते है, और आकाश तो जीवों से व्याप्त ही रहता है, इस प्रकार जीव समूह भरे हुए लोक में एक संन्यासी के लिये वर्षाकाल में एक स्थान पर रहना ही हितकर है।
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