Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 515
________________ औषधियों के प्रयोग करते समय उसे कहना पडता-मैं अच्छी तरह सोच विचार कर इस औषधीय वस्तु का प्रयोग करता हूँ। यह प्रयोग केवल उत्पन्न हुए रोग के नाश के लिये ही है और आरोग्य ( स्वास्थ्य ) की प्राप्ति होने तक ही वह करना है। बौद्ध भिक्षु की भिक्षाचर्या और भिक्षान्न बौद्ध भिक्षाचर्या और भिक्षान्न के सम्बन्ध में हमें विशेष विवरण नहीं मिला, जैन श्रमणों के लिये भिक्षाचर्या के दोषों, भिक्षा ग्रहण योग्य कुलों, आदि का जितना विस्तृत वर्णन मिलता है, उसकी अपेक्षा से बौद्ध भिक्षु के भिक्षा तथा भिक्षान्न सम्बन्धी नियम नहीं मिलता यही कहना चाहिए। इसका कारण यह है कि बुद्ध ने अपने शिष्यों को कोरा भिक्षु ही नहीं बनाया था, किन्तु उन्हें अतिथि का रूप भी दे रक्खा था, और उन्हें भोजन का आमन्त्रण स्वीकार करने की छूट दे दी थी। परिणाम स्वरूप गृहस्थों का आमन्त्रण मिलने पर वे सब के सब गृहस्थ के घर जा कर भोजन कर लेते थे । इससे सिद्ध होता है कि बौद्ध भिक्षुओं के भिक्षा ग्रहण करने में ऐसा कोई विधान होना ही सम्भव नहीं था, जो सूत्रों में लिखा जाता। "मज्झिम निकाय' के चूल हस्थि पदोपम सुत्त के नवम सुत्त में बौद्ध भिक्षु की भिक्षाचर्या में कुछ खाद्य पदार्थ हेय बताये गये हैं जो ये हैं १. इस प्रकार चार शरीरोपयुक्त पदार्थों को सावधानी के साथ प्रयोग में लाने को “पञ्चवेक्खण' ( प्रत्यवेक्षण ) कहते हैं और यह प्रथा आज भो चलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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