Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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लिये माधुकरी वृति से भिक्षा लेने और भोजन का आमन्त्रण न स्वीकार का नियम बनाने का आग्रह किया होगा जिसकी कि बुद्ध ने स्वीकार नहीं किया।
बुद्ध कालीन भिक्षुओं में खान पान सम्बन्धी कड़े नियम नहीं थे, फिर भी भिक्षुओं का जीवन सरल सादा और खान पान साधारण होता था । परन्तु ज्यों ज्यों समय बितता गया उनके खान पान की सादगी में भी परिवर्तन होता गया । बुद्ध के जीवन काल में जो पदार्थ भिक्षुओं के लिये अयोग्य माने जाते थे वे ही धीरे धीरे भिक्षु के जीवन की उपयोगी सामग्री मानी जाने लगी। विमान वत्थु में भिक्षुओं के देने योग्य अनेक वस्तुओं के दान की प्रशंसा की गई है, और उस प्रकार के दान से देव विमान की प्राप्ति होना बताया है। जो नीचे लिखे कतिपय उद्धरणों से ज्ञात होगा
फाणितं, उच्छुखंडिकं, तिंबरूकं, कक्कारिक, एलालुक, वल्लीफलं फारूसकं, हत्थापतापकं, साकमुहि, मूलक...........! निंबमुडिं, अहं अदासि भिक्खुनो पिण्डाय चरंतस्स""पे"||७|| ___ अंबकश्चिक, द्रोणि निमुज्जनं, कायबन्धनं, अंसवट्टकं, अयोग पट्ट', विभूपनं, तालवंठं, मोरहत्थं, छत्तं, उपानहं, पूर्व, मोदकं, सक्खलि ।
( विमान वत्थु पृ० ३०) अर्थ-पाणित ( गन्ने का परिपकरस-राव शक्कर की पूर्वावस्था ) ऊख का टुकड़ा, टिम्बरूफल, ककडी, चीभडा, वेल का
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