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अर्थ-सर्व जीवों की दया के खातिर सावध दोष को वर्जित करने वाले ज्ञातपुत्रीय ऋषि उस दोष की शङ्का करते हुए उद्दिष्ट भक्त को वर्जित करते हैं। आमगंध के विषय में बुद्ध और पूरण कश्यप
का संवाद पूरण कश्यप यद्यपि आत्मा को अमर मानने वाले थे, फिर भी ब्राह्मण सन्यासी होने के नाते मांस नहीं खाते थे, इतना ही नहीं बल्कि वे मांस खाने वाले आजीविक मक्खलि गोशाल और बुद्ध की टीका किया करते थे। एक समय कश्यप की बुद्ध से भेंट हो गई, कश्यप ने उदिष्टकृत भोजन की तरफ संकेत कर बुद्ध से कहायदग्गतो मज्झतो सेसतो वा, पिण्डं लभेथ परदत्त पजीवी । नालं थुतुनोऽपि निपञ्चवादी, तं वापिधीरा मुनि वेदयन्ति ।। ___ अर्थ-जो प्रथम मध्य में अथवा अन्त में परदत्त पिण्ड को पाकर अपना निर्वाह करता है, न दाता की स्तुति करता है, न उसके विरुद्ध कोई शब्द बोलता है, उसको धीर पुरुष मुनि बताते हैं। ___ काश्यप के इस आकूत को समझ कर बुद्ध ने उसे तुरन्त नीचे मुजब उत्तर दियायदस्नमानो सुकृतं सुनिट्टितं, परेहि दिन्न पयतं पणीतम् । सालीनमन्न परिभुञ्जमानो, सो भुञ्जसि कस्सप आमगंधं ॥
(सुत्त निपात पृ. २४)
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