Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 514
________________ ( ४६३ ) थी। भगवान् का कहना था कि “पाति मोक्ख' के नियमों के अनुसार इन वस्तुओं का उपभोग करते समय भी विचार पूर्वक आचरण किया जाय । चीवर का प्रयोग करते समय भिक्षु को कहना पडता था-मैं अच्छी तरह सोच कर यह चीवर पहनता हूँ। इसका उद्देश्य केवल यही है कि ठण्डक, गर्मी, मच्छर, मक्खियां, हवा, धूप, सांप, आदि से कष्ट न पहुँचे और गुह्य इन्द्रियों को ढांक लिया जाय । पिण्डपात सेवन करते समय उसे यह कहना पडता था-मैं अच्छी तरह सोच विचार कर पिण्डपात सेवन करता हूँ। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि मेरा शरीर क्रीड़ा करने के लिये समर्थ बन जाय, मत्त हो जाय, मण्डित और विभूषित हो जाय, बल्कि केवल यह है कि इस शरीर की रक्षा हो, कष्ट दूर हो और ब्रह्मचर्य में सहायता मिले । इस प्रकार मैं ( भूख की ) पुरानी वेदना को नष्ट कर दूंगा, और ( अधिक खा कर ) नई वेदना का निर्माण नहीं करूँगा। इससे मेरी शरीर यात्रा चलेगी, लोकापवाद नहीं रहेगा और जीवन सुखकारी होगा। शयनासन का प्रयोग करते समय उसे कहना पडता-"मैं भली भांति सोच विचार कर इस शयनासन का प्रयोग करता हूँ , इसका उद्देश्य केवल यही है कि ठण्डक, गर्मी, मच्छर मक्खियां, हवा, धूप, सांप, आदि से कष्ट न पहुँचे और एकान्त वास में विश्राम मिल सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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