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अत्रि कहते हैंपक्वं वा यदि वाऽपश्चं, पाचयेद् यः क्वचिद् यतिः । स्वधर्मस्य तु लोपेन, तिर्यग्योनि प्रजेत् यतिः ॥
अर्थ-जो यति पके हुए अथवा कच्चे खाद्य पदार्थ को पकाता है, वह अपने धर्म का लोप करके तिर्यञ्चगति को प्राप्त होता है । जाबाल कहते हैंअन्न-दान-परो भिक्षु, वस्त्रादीनां परिग्रही। उभौ तो मन्दबुद्धित्वात्, पूतिनरक-शायिनी ।।
अर्थः-भिक्षान्न में से दूसरों को दान करने वाला और वस्त्रादि का परिग्रह रखने वाला ए दोनों मन्दबुद्धि भिक्षु पूति नरक में जाकर सोते हैं। बहवृच परिशिष्ट में लिखा है
अन्नदान परो भिक्षु, श्चतुरो हन्ति दानतः । दातारमन्नमात्मानं, यस्मै चान्नं प्रयच्छति ।।
अर्थः-भिक्षान्न सें से अन्नदान करने वाला भिक्षु चार का नाश करता है, भैक्ष्य देने वाले का, अन्न का, अपना तथा अन्न लेने वाले का । क्रतु कहते हैंदासी दासं गृहं यानं, गोभूधान्यधनं रसान् । प्रतिगृह्य यतिमं, हन्यात्कुलशतत्रयम् ।।
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