Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 502
________________ कोई वज्रयान, तो कोई कालयान नाम से अपने मतों को जाहिर करते थे, परन्तु उनमें बौद्ध धर्म का मौलिक तत्व कुछ भी नहीं था। मांस, मत्स्य, मदिरा, आदि पञ्चमकारों के उपासक बने हुये थे और बाहर से बौद्धधर्मी होने का दावा करते थे, ऐसे पतित सम्प्रदाय भारत वर्ष में कब तक टिक सकते थे । वङ्गाल में बैष्णवाचार्य चैतन्यदेव के उपदेश का प्रचार होने पर धीरे धीरे वङ्गाल से भी बौद्ध धर्म ने विदा ली और भारत के बाहर, बाहर के देशों में जा टिका, यह बौद्ध धर्म का विदेशों में फैलने तथा भारतवर्ष से निर्वासित होने का इतिहास और उसका मुख्य कारण है बौद्ध भिक्षुओं का मांसाहार । क्या अाज का बौद्धधर्म बुद्ध का मूल धर्म है ? महात्मा बुद्ध ने जिस धर्म का उपदेश दिया था, वह था प्राणि मात्र की दया। उन्होंने यज्ञवाटों में जाकर यजमान को समझा बुझा कर बलि किये जाने वाले पशुओं के प्राण बचाये थे। बुद्ध ने चाण्डालों, निषादों, चोरों तक को हिंस्रता का त्याग करवा अपना शिष्य बनाया था। वे अपना शरण लेने वाले स्त्री पुरुषों को त्रस स्थावर जीवों की हिंसा न करने न कराने की प्रतिज्ञा कराते थे। यह सब होते हुए भी उन्होंने भिक्षुओं तथा उपासकों के आचरणीय नियमों में जो शिथिलता रक्खी थी उसके परिणाम से आज उनके धर्म का काया पलट हो गया है। पञ्चशील दश शिक्षा पद आदि के रहते हुए भी आज के बौद्ध धर्मो इन बातों पर कितना ध्यान देते हैं, यह तो उनका पूरा परिचय रखने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558