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आकुल, गच्छ में किसी श्रमण के मर जाने पर उसको निकालने के लिये नयन काष्ठ को भी ले रक्खे । उक्त चीजों का आलोचन सग्रह न किया हो और अकस्मात् मर जाय तो परिस्थिति देख कर व्यवस्था की जाय। मरने वाला श्रमण आचार्यादि पद-धारी हो तो उसे दिन- विभाग में ही ले जाना चाहिये, परन्तु सामान्य साधु को मरने बाद रात्रि विभाग में भी तुरन्त त्याग देना चाहिए उसको उठाने के लिये निस्सरण काष्ठ तैयार न हो तो गृहस्थ से मांग कर ले लेना चाहिये ।
किसी के अकस्मात् कालधर्म प्राप्त होने पर भी सूत्रार्थ का रहस्य जानने वाले गीतार्थ साधु को उसके सम्बन्ध में खेद न कर उसका विधि पूर्वक व्युत्सर्जन करने के काम में लगना चाहिये |
निरोहो ।
हत्थ उड़े || ३ ||
जं वेलं कालगनिकारण कारणे भवे छेण बन्धण जग्गण काइय मचे य ना विदु शरीरे पंता वा देव याउ उट्ठ ेज्जा । काइयं डब्ब हत्थेणं मा उट्ठे बुज्झ गुज्झगा || ३६ || वित्ता सेज्ज ह सेज्ज व भीमं वा अट्टहास मु चेज्जा । अभी एणं तत्थ उ कायव्च विहिए वोसिरणं ॥ ४० ॥
अर्थः- श्रमण समुदाय बस्ती में ठहरा हुआ हो और कोई श्रमण काल करे और वहां सकारण या निष्कारण उस समय मृतक को बाहर ले जाने की आज्ञा न हो अथवा नगर पर-चक्र आदि से
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