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( ३२६ )
अर्थ:- आशुकार - अकस्मात् बीमारी से और अनशन से मरे हुए श्रमण के देह की व्युर्जन विधि कहता हूँ ।
एव य काल गयंमी मुखिया सुतत्य गहिय सारें । नहु काय विसा कायन्त्र विहीए वोसिरणं ||३२||
अर्थ :- उक्त किसी सूत्रार्थ के जानकर गीतार्थ व्युत्सर्जन करना चाहिये ।
भी कारण से श्रमण का मरण होने पर को विषाद न कर उसका विधि से
साधु
मृतक को विहित दिशाओं में त्यागना शुभ होता है । श्रमण देह के व्युत्सर्जन के लिये सब से उत्तम नैऋती और सब से अनिष्ट ऐशानी दिशा मानी गयी है । नैऋती के अभाव में दक्षिणा, उसके अभाव में पश्चिमा, पश्चिमा के अभाव में आयी, आनी के अभाव में वायवी, वायवी के अभाव में पूर्वा, पूर्वा के अभाव में उत्तरा दिशा मृतक के त्याग के लिये लेना चाहिए, ईशान दिशा सब प्रकार से वर्जित मानी गयी है ।
"पुव्वं दब्बा लोयण पुच्चि गहणं च ांत कट्टस्स । गच्छमि एस कप्पो अनिमित्त होउ वक्कमणं ॥ ३६ ॥ सहसा काल गयं मी मुखिया सुतत्थ गहिय सारेण | न विसा कायब्बो कायन्त्र विहीए नोसिरणं ||३७||
अर्थः- गच्छवासी साधुओं का यह आचार है कि, वे प्रथम से ही द्रव्य क्षेत्रादि का निरीक्षण कर रक्खे, तथा बाल, वृद्ध,
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