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( १७४ ) होकर साल कोष्ठ, चैत्य में पहुँचे और भगवान के पास जाकर गोचर चर्या की आलोचना कर आहार भगवान् को बताया और उनके दोनों हाथों में वह संपूर्ण खाद्य रख दिया भगवान् ने अमूच्छित भाव से आकांक्षा रहित होकर वह आहार मुख द्वारा उदर कोष्ठक में डाल दिया।
उस आहार के खाने से भगवान् महावीर के शरीर में जो पित्त ज्वरादि रोगातंक थे, वे बहुत जल्दी शान्त हो गये और भगवान् का शरीर धीरे धीरे पूर्ववत् वलिष्ठ हो गया । इस घटना से श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ बहुत हर्षित हुआ। यही नहीं, पर महावीर की निरोगता के समाचारों को सुन कर देव-असुर-स्वरूप त्रैलोक्य भी सन्तुष्ट हो गया ।
१०. आमिष शब्द सम्बोध प्रकरण में वर्णित चतुर्विध पूजा के द्वितीय भेद के रूप में उल्लिखित हुआ है। जो नीचे दिया जाता है
पुष्फामिस थुइ पडिवत्ति भेएहिं भासिया चउहा । जह सत्तीए कुज्जा पूया पूयप्प सम्भावा ॥१६॥
(सम्बोध प्रकरण) अर्थ-पुष्प, श्रामिष (नैवेद्य) स्तुति और प्रतिपत्ति इन भेदों से पूजा चार प्रकार की कही है, जो शक्ति के अनुरूप पूज्य पर प्रकृष्ट सद्भाव लाकर करनी चाहिए।
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