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चातुर्थिक ज्वर को दूर करता है और शीतवीर्य है । इसका स्वरस प्रतिश्याय, श्लेष्म, पित्त, रात्र्यन्ध्यनाशक है।
मुनि शिम्बी सरा प्रोक्ता बुद्धिदा रुचिदा लघुः । पाक काले तु मधुरा, तिक्ता चैव स्मृति प्रदा ॥ त्रिदोष--शूल-कफहत्, पाण्डु-रोग-विषापनुत् । श्लेष्म-गुल्म-हरा प्रोक्ला, सा पक्का रूक्ष-पित्तला ।।
(शा० ग्राम०नि०) अर्थ-अगस्ति को शिम्बा सारक कही है, बुद्धि देने वाला, भोजन की रुचि उत्पन्न करने वाली, हल्की, पाक काल में मधुर तीखी, स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, त्रिदोष को नाश करने वाली, शूल रोग, कफ रोग, को हटाने वाली, पाण्डु रोग को दूर करने वाली,
और श्लेष्म, गुल्म को हटाने वाली होती है, परन्तु पकी हुई शिम्बा रूक्ष और पित्तप्रद होती है।
मुनिषण्णे सूचिपत्रः स्वस्तिकः शिरिवारकः ॥३५१॥ श्रीवारकः शितिवरो वितुन्नः कुक्कुटः शिखी ।
(इति निघण्टु शेपे ) अर्थ-सूचि पत्र. स्वस्तिक, शिरिवारक, श्रीधारक, शितिवर वितुन्न, कुक्कुट और शिखी ये निषण्णक के नाम है ।
सुनिषण्णो हिमोग्राही, मोह-दोपत्रयापहः । अविदाही लघुः स्वादुः कषायो रूक्ष दीपनः ।।
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