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( ३१३ ) पश्चिम और उत्तर दिशा सम्मुख भी, उसी प्रकार दिशाश्र. के भिन्न भिन्न भागों में बड़े रह कर तप और ध्यान करेंगे।
उक्त दिशाओं का सूचन सर्वतः इस शब्द से मिलता है, तथा प्रत्येक पंक्तियों के अंकों की संख्या एक मिलती है, चाहे किसी भी पंक्ति के अंक पूर्व से पश्चिम तरफ गिनो, दक्षिण से उत्तर तरफ गिनो, एक कोने से दूसरे कोने तक गिनो, लघु सर्वतो भद्र के अटों का जोड पन्द्रह ही अवेगा। इसी प्रकार महा सर्वतो भद्र के अङ्कों के कोष्ठक किसी भी दिशा से गिनने पर अङ्क संख्या अट्ठाईस ही होगी।
अब रहा भद्र शब्द-भद्र शब्द कल्याण वाचक है, यह पहले कहा जा चुका है। इन तपों का आराधक ध्यान में चित्त स्थिर कर प्राणिमात्र के कल्याण की कामना करता है। __वह प्राणिमात्र में समान दृष्टि रखता हुआ "आत्मवत्सर्व भूतेषु" इस वाक्य को चरितार्थ करता है और अपनी राग द्वष की ग्रन्थियों को विलीन कर देता है। इसी कारण से इन तपों के साथ भद्र शब्द जोड़ा गया है।
भद्रोत्तर इस नाम के साथ यद्यपि सर्वतः शब्दनहीं है, तथापि भद्र शब्द का सहचारी होने से सर्वतः शब्द का अर्थ अध्याहार से लेकर इस तप में भी लघु, महा सर्वतो भो की तरह पूर्वादि दिशाओं में लिखित संख्या के दिनों तक खड़े खड़े तप और ध्यान किया जाता है।
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