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देवदत्त क्या चाहता था
बौद्ध सूत्रों में देवदत्त के सम्बन्ध में अनेक भूठी बातें उड़ा कर उसकी बुराइयां लिखी गई हैं। कहा गया है देवदत्त ने बुद्ध के पास अपने को भिनु संघ का नेता बनाने की मांग की थी, परन्तु बुद्ध ने अस्वीकृत कर दिया। इससे देवदत्त बुद्ध का विरोधी हो गया और उन्हें मरवाने तक की प्रवृत्तियां कर डाली, पर बुद्ध भगवान् का वह कुछ भी नहीं बिगाड़ सक! । बौद्ध लेखकों की इन बातों में सत्यांश कितना होगा, यह कहना तो कठिन है पर जहां तक हम समझ पाये हैं, देवदत्त के सम्बन्ध में बौद्ध लेखकों ने बहुत ही कुरुचिपूर्ण काम किया है। देवदत्त यदि ऐसा होता जैसा कि लेखक कहते हैं तो उसके पास पांच सौ भिक्षुओं का समुदाय न होता।
बुद्ध देवदत्त के झगड़े का कारण ता जुदा ही है, राजगृह के राजा बिम्बसार के राज्य शासन काल में बुद्ध ने राजगृह में अपने धर्म का प्रचार किया था, इतना ही नहीं बल्कि राजा बिम्बसार को भी अपना अनुयायी बना डाला था। जिसके परिणाम स्वरूप राजा ने राजगृह के पास का एक उद्यान बुद्ध और उनके मितुओं के रहने के लिये अर्पण कर दिया था, और उसमें अनेक भक्तों ने एक के बाद एक करके अनेक बिहार भी बना डाले थे, जिनकी संख्या अठारह तक पहुंची थी। मगध में बुद्ध का धर्म प्रचार महावीर के छद्मस्थ्य काल में हुआ था । जिस प्रकार बुद्ध राजगृह
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