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यह पात्र सम्बन्धी उपकरण समुदाय है। तीन ओढने के वस्त्र ८, ६, १०, दो सूती, एक ऊनी, रजोहरण ११, और मुखस्त्रिका १२, यह उपधि पात्र भोजी और तीन वस्त्रधारी जिन कल्पिक श्रमणों का है।
___ जिन कल्पिक श्रमणों का द्वैविध्य जिण कप्पिया वि दुविहा, पाणिपाया पडिग्गहधराय । पाउरण मपाउरणा; एक्केका ते भवे दुविहा ॥४६४॥ दुग तिग चउक्क पणगं, दस एक्कारसेव वारसगं । ए ए अट्ठ वियप्पा, जिण कप्पे हुंति उवहिस्स ॥४६॥
अर्थः--जिन कल्पिक श्रमण दो प्रकार के होते हैं। एक हस्त भोजी दूसरे पात्रधारी, इन प्रत्येक के दो दो भेद होते हैं प्रावरक ( वस्त्र ओढ़ने वाले ) दूसरे वस्त्र हीन । जिन-कल्पियों के पाणिपात्रादि भेद से उनकी उपधि के कुल आठ भेद पड़ते हैं। दो प्रकार की, तीन प्रकार की, चार प्रकार की, और पांच प्रकार की, ऐसे पाणिपात्र जिन कल्पिक श्रमणों की उपधि के चार भेद होते हैं । इसी प्रकार पात्रधारी जिन कल्पिकों की उपधि भी चार प्रकार की होती है नवविध, दशविध, एकादश विध और द्वादश विध जिसका वर्णन नीचे की गाथाओं में दिया जाता है।
पुत्तिरयहरणेहिं, दुविहो तिविहो य एक्ककप्पगुप्रो । . चउहा कप्प दुएणं, कप्पति गेणं तु पंचविहो ॥४६६।।
दुविहो तिविहो चउहा, पंच विहोऽविदूस पाय निज्जोगो ।
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