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( २६५ ) २८. विहार के रास्ते में नदी आने पर पानी में होकर नदी पार कर सकता है।।
२६. वह गहरी नदी को नौका में बैठकर पार कर सकता है, परन्तु समुद्र-यात्रा नहीं कर सकता।
३०. वह खुले शिर नङ्ग पैर चलता है। ३१. वह कड़ी धूप में भी शिर पर छाता नहीं रखता है। ३२. श्रमण किसी पदार्थ का क्रय-विक्रय नहीं करता है। ३३. वह गृहस्थ धर्मी के सम्पर्क से सदा दूर रहता है।
३४. वह ऐसे स्थान में कभी नहीं ठहरता, जिसमें पशु, पंडक स्त्री आदि रहते हों।
३५. वह साल भर में दो बार अपने शिर तथा मुह के वालों का लुञ्चन करता है।
३६ वह सिले हुए वस्त्र को नहीं पहनता है। ३७. श्रमण पश्चास्रव से सदा दूर रहता है। ३८. श्रमण अपने गृहीत नियमों को अखण्डित रखता है।
३६. जिन कार्यों का उसने त्याग किया है, उन्हें जीवन पर्यन्त नहीं करता है।
४६. श्रमण सर्व जीवों के साथ समदृष्टिक रहता है।
४१. वह विग्रह (केश) जनक बात अपने मुख से नहीं निकालता है।
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