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__ ( २५४ ) 'सव्यं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं" इस नियमानुसार अपने काम की कोई भी चीज गृहस्थों से मांस कर ही प्राप्त करते हैं ।
भिक्षाकुल निम्रन्थ श्रमणों की भिक्षा के लिये भी कुल नियत किये गये हैं । वे उन्ही कुलों में भिक्षा ग्रहण करते हैं, जो व्यवहार दृष्टि से शुद्ध माने जाते हैं। चाण्डालादि पञ्चम जाति के लोगों के घर भिक्षा ग्रहण करना प्रतिषिद्ध है । किन किन जाति तथा कुलों के यहाँ भिक्षा के लिये जाना चाहिये । इसकी नामावली आचाराङ्ग सूत्र में निम्न प्रकार से सूचित की है ।
"से भिक्ख वा भिक्खूणी वा गाहावइ कुलाइ पिण्डवाय पडिवाये अणुपविट्ट समाणे सेज्झाई जाणिज्जा, तं जहा--उम्ग कुलाणि वा, भोग कुलाणि वा, राइन्नकुलाणि वा, खत्तिय कुलाणि वा, इकखाग कुलाणि वा, हरिवंस कुलाणि वा, एसियक लाणि वा, वेसिय कुलाणि वा, गंड कुलाणि वा, कुट्टागकुलारिण वा, गामरकखकुलाणि वा, सोकसालिय कुलाणि वा, अम्नतरेसु वा तहप्प गारेसु कुलेसु अदगुच्छियेसु, अगरिहेसु असणं वा, पाणं वा, खाइमवा, साइमंवा फासुपं जाव पडिगाहेज्जा।
पिण्डेषणाध्याय द्विती० उद्देश" अर्थ-वह निर्ग्रन्थ भिक्षु अथवा निग्रन्थ भिक्षुणी भिक्षान्न के लिये गृहस्थ कुलों में प्रवेश करते हुए इन कुलों की जांच करे ।
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