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कोशी, वेदों,जैन सूत्रों और बौद्ध ग्रन्थों के उद्धरणों के आधार पर मांस मत्स्य आदि शब्दों के अर्थ विवेचन में हमें क्वचित पुनरुक्ति करनी पड़ी है, इसका कारण मात्र शब्दों के भूले हुए अर्थों को समझाना है।
इस मांस विषयक विवेचना से विद्वान पाठक गण समझ सकेंगे कि मांस आदि शब्दों का वर्तमान कालोन अर्थ करके डा० हर्मन जैकोबी, पटेल गोपाल दाम और अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी ने कैसा अक्षम्य भूल की है। हमने इन विद्वानों के विचारों का इस अध्याय में प्रतिवाद किया है। फिर भी इसके सम्बन्ध में कहने की बहुत सी बातें इस अध्याय में नहीं आ सकी हैं । अतः इस विषय में रस रखने वाले पाठकों से हमारा अनुरोध है कि “मानव भोज्य सीमांसा" के प्रथम चतुर्थ, पञ्चम,
और पप इन अध्यायों को पढ़ने से ही इस तृतीय अध्याय का उद्देश्य पूरा हो सकेगा!
x इति तृतीयोऽध्यायः ४
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