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योग्यता गृहस्थाश्रम से निकल कर जैन श्रमण बनने की इच्छा बाले मनुष्य में अनेक प्रकार की योग्यतायें होनी चाहिए-ऐसा जेन शास्त्रकारों ने प्रतिपादित किया है । जिसका संक्षिप्त सार यह है ।
दीक्षार्थी की उम्र आठ वर्ष के ऊपर और साठ के नीचे की होनी चाहिए।
वह पञ्चन्द्रिय सम्पन्न और शरीर में अविकल होना चाहिए। वह जाति अथवा कुल से निन्दित (अस्पृश्य) न होना चाहिए। वह किसी का क्रीत दास न होना चाहिए । वह किसी का कर्जदार न होना चाहिए ।
वह क्लीब ( नपुसक ) न होना चाहिए। __ इत्यादि शास्त्रोक्त अयोग्यताओं का विचार कर संसार से विरक्त योग्य मनुष्य को जैन श्रमण की प्रत्रज्या दी जाती है । दीक्षार्थी को कम से कम छः मास तक श्रमणों के संसर्ग में रक्खा जाता है। इस समय के बीच वह योग्य शास्त्र का अध्ययन करता है, और श्रमणों की दिनचर्या आदि का भी मनन किया करता है। छः मास के बाद जब प्रव्रज्या देने का शुभ समय निकट आता है, उस समय अनेक प्रश्नों द्वारा उसके वैराग्य की परीक्षा करके उसे सामायिक चारित्र प्रदान किया जाता है।
सामायिक चारित्र का प्रतिज्ञा पाठ करेमिभन्ते । सामाइयं सव्वं सावज जोगं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि
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