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( २१२ ) में श्रेणिक ( बिम्बसार ) के श्रद्धास्पद. बने थे, उसी प्रकार बुद्ध का शिष्य देवदत्त राजकुमार अजात शत्रु ( कुणिक ) का आदर पात्र बना था ।
भगवान महावीर को केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद वे मगध तथा उसके आस पास के देशों में विशेष विचरे और राजगृह को अपना केन्द्र बना लिया।
राजा बिम्बसार की अन्तिम रानी और अजात शत्रु की माता चेलना महावीर की मातुलपुत्री बहन होती थी, और वह जन्म से जैन धर्म की उपासिका थी। जैन श्रमणों की उपदेश धारा और रानी चेलना की प्रेरणा से राजा बिम्बसार पिछले समय में महावीर का परमभक्त बन गया था, इतना ही नहीं उन्होंने अपने कुटुम्ब के सभी मनुष्यों को यह आज्ञा दे दी थी कि जो भी व्यक्ति जैन धर्म की दीक्षा लेना चाहे, उसे मेरी तरफ से आज्ञा और सहानुभूति है । राजा की इस सद्भावनामय अनुमति से प्रभावित हो कर कोई तेरह राजकुमारों ने श्रमण धर्म की दीक्षा लेकर, श्रमण संघ में प्रवेश किया था। बिम्बसार की मृत्यु के बाद उनकी अनेक विधवा रानियां भी गृहवास छोडकर महावीर की श्रमणी समुदाय में दाखिल हुई थीं। बिम्बसार की मृत्यु के बाद अजातशत्रु (कुणिक) मगध का राजा बना। इस प्रकार मगध और खास कर राजगुह में जैनधर्म का प्राबल्य बढ जाने के बाद बुद्ध का विहार क्षेत्र राजगृह से मिट कर श्रावस्ती बना था। तथापि देवदत्त उस समय भी राजगृह में विशेष रहता था, कारण यह था कि राजा अजातशत्रु,
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