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( २१३ ) उनका मित्र था। जैन उपासक होने पर भी अजातशत्रु देवदत्त के सुख साधनों की तरफ ध्यान रखता था, इतना ही नहीं प्रसङ्ग पाकर राजा उनसे मिलता और उपयोगी साधन सामग्री भी भेजता रहता था । राजगृह में जैन श्रमणों के संसर्ग से और राजा अजात शत्र के परिचय से देवदत्त के मन पर जैन श्रमणों की आचार की अमिट छाप पड़ गई थी, और वह बौद्ध संघ की कतिपय शिथिलताओं को मिटाकर उसे उच्च कोटि का बौद्ध संघ बनवाना चाहता
था। इस कारण देवदत्त ने बुद्ध के आगे यह प्रस्ताव उपस्थित किया
१. भिक्षु जिन्दगी भर आरण्यक रहे, जो गांव में रहे, उसे दोष हो।
२. जिन्दगी भर पिण्डपातिक (भिक्षा मांग कर खाने वाले ) रहें जो निमन्त्रण खाये, उसे दोष हो । ___३. जिन्दगी भर पांसु कलिक ( फेके चिथड़े सीं कर पहनने वाले ) रहे जो गृहस्थ के ( दिये ) चीवर को उपभोग करे, उसे दोष हो।
४. जिन्दगी भर वृक्ष मूलिक ( वृक्ष के नीचे रहने वाले ) रहे, जो छाया के नीचे जाय, वह दोषी हो।।
५. जिन्दगी भर मांस मछली न खाये, जो मछली मांस खाये उसे दोष हो ।
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