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( २०७ ) "मन ज्ञाने" इस धातु से मांस शब्द निष्पन्न हुआ है और इसका अर्थ होता है "बड़े आदमी के सम्मान का साधन ।”
पुरातत्त्व ज्ञाता विद्वानों ने आचार्य गास्क का समय ईसा के पूर्व की नवम शताब्दी निश्चित किया है । इससे यह सिद्ध होता है कि आज से तीन हजार वर्ष पूर्व के वैदिक साहित्य में मांस शब्द वनस्पति निष्पन्न खादा के ही अर्थ में प्रयुक्त होता था।
इसके बाद धीरे धीरे ब्राह्मणों में मधुपर्क तथा पितृकर्म में प्राण्यङ्ग मांस का प्रयोग होने लगा "बौधायन गृह्यसूत्र” में जो कि ईसा के पूर्व षष्ठ शताब्दी की कृति मानी जाती है उसमें यह श्राग्रह किया गया है कि मधुपर्क में मांस अवश्य होना चाहिए, यदि पशु मांस न मिल सके तो पिष्टान्न का मांस तैयार करके काम किया जाय . "भारण्येन वा मांसेन ॥५२।। नत्वेवाऽमांसोऽयः स्यात् ।।५।। अशक्ती पिष्टान्न संसिध्येत् ।।४।। ___ अर्थ-( गौ के उत्सर्जन कर देने पर अन्य ग्राम्य पशुओं के अलाभ में ) आरण्य पशु के मांस से अर्घ्य किया जाय, क्योंकि मांस बिना का अयं होता ही नहीं, पारण्य मांस भी प्राप्त न कर सके तो पिष्ट से उसे ( मांस को) तैयार करे । ___ उपनिषदों में भी मांस तथा आमिष शब्द प्रयुक्त हुए दृष्टि गोचर होते हैं, परन्तु वहां सभी जगह ये शब्द वनस्पति खाद्य पदार्थ का अर्थ प्रतिपादन करते हैं। उपनिषद् वाक्य कोश में लिखा है
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