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( २०४ ) अत्र "रसायण" मद्य हट्ठो दृष्टान्तः । यथा महाराष्ट्र देशे रसा. यणे मद्यं भवतु वा मा वा तथापि तत्परिज्ञानार्थ तत्र ध्वजो बध्यते तं ध्वजं दृष्ट्वा सर्वे भिक्षाचरादयः परिहरन्ति ।
(भाग ४ १० १८५) अर्थ-यहां रसायण का दृष्टान्त है, रसायण अर्थात् मद्य का हाट । उसमें मद्य हो या न हो परन्तु महाराष्ट्र देश में उस पर ध्वज बान्धा जाता है जिसको देख कर सभी भिक्षाचर उस हाट को छोड़ देते हैं।
ऊपर के विवेचन से भली भांति सिद्ध हो जाता है कि जैन श्रमण ही नहीं, किन्तु वैदिक सन्यासी, बौद्ध भिक्षु आदि सभी संप्रदायों के भिक्षाचर मद्य पान से दूर रहते थे।
__मेगास्थनीज तथा अन्य विद्वानों का यह कथन कि ब्राह्मण यज्ञों में शराब पीते थे । उपयुक्त पुलस्त्य के मद्य विवरण से इस कथन का यथार्थ उत्तर मिल जाता है। पुलस्त्य ने सुरा को ही वास्तविक हेय मद्य माना है । उसकी महापातकों में गणना की है, शेष ग्यारह प्रकार के मद्यों को सामान्य मद्य कहा है। इसका तात्पर्य यही है कि रोगादि कारण में इनमें से किसी प्रकार के पेय का पान करने पर भी उसे प्रायश्चित्तयोग्य नहीं माना जाता था।
यज्ञ में ब्राह्मणों को मद्य पान करने की बात कहने वाले भी दिशा भूले हुये हैं । यज्ञ में शराब नहीं, किन्तु सोम रस का पान किया जाता था । सोमवल्ली पवित्र बनस्पति होती थी, उसके पत्तो को
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