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भगवान् का आदेश पाकर सिंह बहुत ही सन्तुष्ट हुआ और भगवान् को वन्दन करके अपने स्थान गया और मुखवस्त्रिका तथा पात्र की प्रतिलेखना कर गौतम स्वामी की तरह फिर भगवान् के पास जा उनको वन्दन कर आज्ञा ले कर में ढिय ग्राम की तरफ चला । में ढियग्राम के मध्य में होकर रेवती के घर की तरफ गया। जब सिंह ने रेवती के घर द्वार में प्रवेश किया तो वह अपने आसन से उठी और साथ ही आठ कदम सामने जाकर विधि पूर्वक मुनि को चन्दन किया और बोली कहिए महाभाग ! किस कारण से पधारे ? रेवती का प्रश्न सुनकर अनगार सिंह बोले गाथापतिनि ! तुमने भगवान् महावीर के लिये दो कूष्माण्ड फल-घृत-पक्व कर तैयार किये हैं उनकी तो आवश्यकता नहीं है, परन्तु अगस्त्य फली का मावा तथा सुनिषएणक ( कुक्कुट ) वनस्पति के घन के योग से तैयार किया हुआ पाक जो तुम्हारे घर में पहले से विद्यमान है, उसकी आवश्यकता है । सिंह की बात सुनकर रेवती बोली, हे सिंह ! ऐसा तुमको कौन ज्ञानी और तपस्वी मिला जिससे मेरी रहस्य भरी बातें तुमने जान कर कह दी । इस पर सिंह ने कहा, मैं भगवान् महावीर के कहने से इन बातों को जानता हूँ। यह सुन कर रेवती बहुत हर्षित हुई और रसोई घर में जाकर सिंह का पात्र नीचे रखवाया और अन्दर से वह खाद्य पाक लाकर सब पात्र में डाल दिया, रेवती ने इस शुद्ध द्रव्य का शुभ भाव से दान देकर देव गति का आयुर्बन्ध किया ।
बाद में सिंह रेवती के घर से निकल में ढिय गाम के बीच में
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