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इस बात के स्पष्टीकरण के लिए हम यास्क निरुक्त का ही थोड़ा सा स्वरूप वर्णन करेंगे।
यास्क निरुक्त में कुल बारह अध्याय हैं । जिनके अन्तर्गत वेदों में प्रचलित नामों का एक छोटा सा कोश दिया गया है, जो निघण्टु कहलाता है। इस निघण्टु में पदार्थ नामों और क्रियास्मक धातुओं का समावेश किया है। नामों की संख्या चारसौ अठावन है, तब धातुओं की संख्या तीनसौ तेरह ३१३, इन नामों के अभिधेय द्रव्य केवल चौपन हैं । जैसे
पृथिवी के २१, हिरण्य के नाम १५. अन्तरिक्ष नाम १६, साधारण ६, रश्मिनाम १५, दिङनाम ८, रात्रिनाम २३, उषा १६, मेघ ३०, उदक १०१, अश्व २६, ज्वलन्नाम ११, कर्म के २६, मनुष्य २५, अंगुलि २२, अन्न के २८, बल के २८, गो के ६, क्रोध के १०, अर्हन् के २२, वाङ्नाम ५७, नदी के ३७, आदिष्टपयो अनेक यज्ञों में मेरी स्तुति की, उदार बुद्धि वाले यास्क ने मेरी स्तुति कर नष्ट हुए निरक्त को मेरी कृपा से प्राप्त किया । यद्यपि महाभारत के इस उल्लेख से नष्ट निरुक्त यास्क को ही प्राप्त होने की बात कही गयी है, परन्तु यास्क स्वयं अपने निरुक्त भाष्य में शाकटायन, शाकफरिण, गालव, काथक, औपमन्यव, तैटीकि, गार्ग्य आदि अनेक निरुक्तकारों का नाम निर्देश करते हैं। इससे इतना तो निश्चित होता है कि यास्क के समय में दूसरे भी अनेक निरुक्त विद्यमान थे।
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