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उपयुक्त मांसादि शब्द जैन सूत्रों तथा प्रकरण प्रन्थों में आते रहते हैं । परन्तु इनमें से बहुत से शब्दों के मौलिक अर्थ ईसा की प्रथम शताब्दी तक भूले जा चुके थे । मात्र आमिष शब्द अपना मौलिक अर्थ ईसा की बारहवीं सदी तक टिकाये रहा था, परन्तु उसके बाद आमिष का वास्तविक अर्थ भी चला गया ।
अब हम उक्त शब्द कहां कहां प्रयुक्त हुए हैं, उनका स्थल निर्देश पूर्ण वर्णन करेंगे ।
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मांस शब्द "आचारांग” “निशीथाध्ययन" "सूर्य्य प्रज्ञप्ति " "चुल्ल कप्प सुत्त" आदि सूत्रों में आमिष शब्द "सम्बोध प्रकरण " "धर्म रख करण्डक" आदि में, पुदल शब्द " आचारांग " दशवेकालिक सूत्र" आदि में, मड शब्द "भगवती सूत्र में, मत्स्य शब्द "आचारांग” “निशीथाध्ययन" आदि में, और मद्य शब्द " वृहत्कल्प” भाष्य, “चुल्ल कप्प सुत्त" में आया है । इनमें से मांस आमिष शब्द घृत पक्व मिष्टान्न के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
मड प्रासुक शब्द अचित्त ( निर्जीव ) भोजन पानी के अर्थ में व्यवहृत हुआ है । मत्स्य शब्द जैन सूत्रों में मद कारक कोद्रव आदि असार धान्यों के तन्दुल के अर्थ में आया है । मद्य शब्द सन्धान जनित सौवीर जल आदि पेय पानीय के अर्थ लिखा गया है ।
अब हम उक्त शब्दों के सूत्र स्थलों को उद्ध त करले उनका वास्तविक अर्थ समझायेंगे। आचाराङ्ग सूत्र द्वितीयश्रुतस्कन्धे
संखडि सूत्रम् -
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