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अर्थ---उसमें से बीज तथा आंतें निकाल दे फिर उसे धो डाल और बाद में प्रवणी में रक्खे । ___ फल मेवों के जिस भाग को आज कल गिरी अथवा मींगी कहते हैं, उसको वैद्यक शास्त्रों में मज्जा इस नाम से उद्ध त किया गया है । जैसे
नारिकेलभवा मज्जा स्विन्ना दुग्धे सुखण्डिता भर्जिता घृतखण्डेन, स्वनिमित्त-गुणावहा ।।
(क्षेम कुतूहल ) अर्थ-नारिकेल की गिरी को दूध में रौंध कर सूक्ष्म टुकड़े कर घी में भुन कर खांड की चासनी में डालने से नारिकेल पाक बनता है, जिसका गुण नारिकेल की प्रकृति के अनुसार होता है ।
वृक्ष के कठिन भाग को तथा फलों के बीजों ( गुठलियों ) को लो अस्थि नाम से निर्दिष्ट किया ही है, परन्तु कहीं फल के भीतर के कठिन परदे को भी अस्थि नाम से बतलाया है । जैसे----
कपासफलमत्युष्णं, कषायं मधुरं गुरु । चातश्लेष्म-हरं रूच्यं, विशेषेरणास्थिवर्जितम् ।।
( क्षेम कुतूहल ) अर्थ-कपास का फल अति उष्ण प्रकृति बाला, कषाय तथा मधुर रस बाला, और गुरु होता है ।
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