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मधुपर्क के लिये गाय बांधनी पड़ती है, गाय को देख कर अर्घ्य "गोर्धनुर्भव्या" इत्यादि मन्त्र पढ़ कर उसको छोड़ने की आज्ञा दे दे तो छोड़ दे, उसके स्थान में मेष अथवा बकरे के मांस से मधुपर्क करे, बकरे के अभाव में किसी जंगली भक्ष्य पशु के मांस से मधुपर्क करना । परन्तु मांस बिना मधुपर्क नहीं होता, आरण्यक पशु का मांस प्राप्त करने की शक्ति न हो तो फिर पिष्टान्न को मांस के प्रतिनिधि के रूप में पकाये।
कात्यायन स्मृति में:साक्षतं सुमनो युक्त-मुदकं दधि संयुतम् । अयं दधि-मधुभ्यां च,मधुपर्को विधीयते ॥१८॥ कांस्येनैवाहणीयस्य, निनयेदर्घ-मञ्जली । कांस्यापिधानं कांस्यस्थं, मधुपर्क समर्पयेत् ॥१६॥
खण्ड-२६, पृ० २०२ अर्थः-अक्षत, पुष्प, दधि, और जल इन चार पदार्थों से श्रयं बनाया जाता है, दधि और मधु से मधुपर्क किया जाता है ।। १८ ॥
__ कांस्य के पात्र में रख कर अर्हणीय की अञ्जलि में अर्घ दें,
और मधुपर्क कांस्य पात्र में रख कर उस पर कांस्य का ही दकन - देकर अर्घाह को अर्पण करे ।। १६ ।।
शारदा तिलक में मधुपर्क का लक्षण
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