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आलोचनात्मक मूल्यांकन
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शृगार , ऋतु और प्रकृति वर्णन
शाओं सान गौरमिपति से लगनाप राजा जनक, सीता को राम के लिए दे देते हैं। हलधर सीता को ऐसे ग्रहण करते हैं, मानो जलधर ने बिजली को पकड़ लिया हो। मानो परमात्मा ने त्रिभवन लक्ष्मी को ग्रहण किया हो, मानो चन्द्रमा से कुसुममासा विकसित हुई हो । दशरथ दूत भेजकर राम को अयोध्या खुलवाते हैं। राम सीता के साथ अयोध्या आकर घी, दूध और धाराजलों से जिनेश्वर प्रतिमा का अभिषेक करते हैं। राजा वा रथ संतुष्ट होकर सात दुसरी कन्याओं से राम का विवाह कर देते हैं तथा लक्ष्मण का सोलह दूसरी कन्याओं से । इसी पुष्ड भूमि में वसंत ऋतु का आगमन होता है । कवि कहता है मानो वसन्त राम-लक्ष्मण का विवाह देखने माया हो।
वसन्त का यह रूप देखिए–'अभिनव सहकार वृक्षों से महकता हुआ, कसाली की तरह मधु धाराबों से बहता हबा, हेमंत की प्रभुता को समाप्त करता हुआ, दसों विशामों में अपने चित्रों को प्रेषित करता हुआ, नवांकुरों से चमकता हुमा, पल्लवों से हिलता हुआ, सुन्दर बावड़ियों के जलरूपी पीर को हटाता तुआ, नीले शैवाल तीर, सूर्य के तीक्ष्ण प्रताप और दिनों की लम्बाई को दिखाता हुआ, अशोक वृक्षों को पत्र-ऋद्धि, मोक्ष (अर्जुन) वृक्षों की दुष्ट फागुन के द्वारा मोक्षसिधि (पत्र क्षरण) प्रकट करता हुला, वाउल पक्षियों के पारीरों को छाया करता हवा, बनलक्ष्मी के मोस रूपी आंसुओं को पोंछता हुआ, तिलक वृक्षों के पत्रों में तिलक बिलास करता हुआ, लतारूपी कामनियों में रस उत्पन्न करता हुआ, प्रियों के अभिलाषा कवच को चीरता हुमा, कनेर पुणों के पराग से धूमरित करता हुआ, मानिनियों के मानगिरि को चूर करता हा, मडराती हुई प्रमरमाला से गुनगुनाता हुआ, उत्तुंग वृक्षों पर दिनों को गंवाता हुमा, मन्दार कुसुमों के पराग से महकता हुश्रा, रमण की अभिलाषा के विलास से घूमता हुवा।'
___ कवि कहता है कि जो अभी तक वन में खुपचाप विचरण कर रहा था वह सुन्दर फोकिल अब मधु का सेवन कर रहा है और बार-गार मालाप कर रहा है । मतवाला कॉन प्रलाप नहीं करता ?
(70/4) वसंत को उन्मादकता में राम का अपनी प्रेयसियों के साथ कोड़ा करने का दृश्य अनोखा ही है
"कोणा बज रही है, आपानक पिया जा रहा है । प्रियजनों के चित्त साधे जा रहे हैं। सप्त स्वरों में मधुर गाया जा रहा है। निरन्तर गहरा प्रेम बढ़ रहा है। पराग से प्रचुर मल्लिका पुष्पों की माला बांधी जा रही है । सुगंधित द्रव्यों का छिड़काव किया गया है। नूपुरों को झकार की तरह मयूर नाच रहे हैं । जहाँ भ्रमर भ्रमण कर रहे हैं ऐसे दमनक पुष्पों के घर में फूलों की सेज पर सोया जा रहा है। कामदेव अपने पुष्प तीरों को साध रहा है और तपस्वियों के बड़प्पन को नष्ट कर रहा है। रूठी हुई प्यारी को मनाया जा रहा है,उसे काम की सुखद पीड़ा दी जा रही है। सरोवर की जलकीड़ा से शरीरों को सिंचित किया जा रहा है, मंत्रों से केशर मिश्रित जल छोड़ा जा है। दिखाई पड़ने वाले अंगों से रस बढ़ रहा है। प्रणयिनियों के सूक्ष्म कटिवस्त्र गीले हो रहे हैं। नील कमलों की मालाओं के ताड़न से, सुन्दर खिले हुए पलाश वृक्षों से प्रज्वलित तथा जिसमें प्रिय-त्रिमतमाएँ अपनी इच्छानुसार एक-दूसरे को मना रहे हैं ऐसा वसन्त तेजी से बढ़ रहा है।" (70/15)
रावण की दूती जब वाराणसी पहुंचती है, तो उसके निकट स्थित नंदन वन इस प्रकार दिखाई देता है
"जिसमें धरती वृक्षों की जड़ों से अबरुव है, आकाश पुष्प-पराग से धूसरित है । जहाँ वृक्ष-पाखानों पर बन्दर क्रीड़ा कर रहे हैं; ताड़ और तमाल के वृक्ष आसमान को छू रहे हैं । जहाँ बिल्व चिंचा और पुष्प