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महाधे अणुभागधाहियारे
अणुभा० वट्ट | मोह० जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० खवग० अणियट्टि ० चरिमे जह० अणु० वट्ट० । वेद० - णामा० जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० सम्मादिट्ठिस्स वा मिच्छादिट्ठिस्स वा परियत्तमाणमज्झिमपरिणामस्स । आयु० जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण● जहणिया अपजत्तणिव्यत्तीए णिव्वत्तमाणयस्स मज्झिमपरिणामस्स जह० अणु० वट्ट० | गोद० जह० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० सत्तमाए पुढवीए रह० मिच्छा० सागा० सव्ववि० सम्मत्ताभिमुह० चरिमे जह० अणु० वट्ट० । एवं ओवभंगो पंचिटि ० तस ०२ - पंचमण० - पंचवचि ० - कायजोगि०-लोभक० - चक्खु ० - अचक्खु ० - भवसि ० -सण्णिआहारग ति ।
५०. रेइएस घादि०४ जह० अणुभा० कस्स ! अण्ण० असंजदसं० सागा० सव्वविसु ० जह० अणु० वट्ट० । वेद०-णामा- गो० ओघं । आउ० जह० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० मिच्छादि जहण्णियाए पजत्तणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाणयस्स मज्झिमपरिणामस्स । एवं सत्तमाए । उवरिमासु वितं चैव । णवरि गोदस्स जह० अणुभा० कस्स १ अण्ण० मिच्छादि० परियत्तमाणमज्झिमपरिणामस्स जह० अणु० वट्ट० ।
५१. तिरिक्खेसु घादि ० ४ जह० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० संजदासंजद व
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भागबन्धका स्वामी है । मोहनीय कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव मोहनीय कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है | वेदनीय और नामकर्मके वन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तर सम्यग्दृष्टि या मिध्यादृष्टि परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव वंदनीय और नाम कर्म के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जघन्य अपर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान, मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित जीव आयु कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्व अभिमुख और अन्तिम जघन्य अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी मिध्यादृष्टि जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी हैं । इसी प्रकार ओघके समान पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रसपर्याप्त, पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, लोभकपायवाले, चक्षदर्शनी अचक्षुदर्शनी, भव्य, संज्ञी और श्राहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
५०. नारकियोंमें चार घाति कर्मोंके जवन्य अनुभाग बम्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मो जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका भंग ओधके समान है। कर्म के जधन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? जवन्य पर्याप्त निवृत्ति से निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि जीव आयुके कर्मके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिये। ऊपरकी अन्य पृथिवियों में भी वही भङ्ग है । इतनी विशेपता है कि गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर मिध्यादृष्टि जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है।
५१. तिर्यञ्चोंगें घातिकर्मोंके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्व
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