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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन १५
पूर्ण वचन, ५. गहन-ठगने के विचार से अत्यन्त गूढ़ भाषण करना, ६. नूम-ठगने के हेतु निकृष्ट कार्य करना, ७. कल्क-दूसरों को हिंसा के लिए उभारना, ८. करूप-निन्दित व्यवहार करना, ९. निह्नता-ठगाई के लिए कार्य मन्द गति से करना, १०. किल्विषिक-भांडों के समान कुचेष्टा करना, ११. आदरणता-अनिच्छित कार्य भी अपनाना, १२. गूहनता-अपनी करतूत को छिपाने का प्रयत्न करना, १३. वंचकता-ठगी; और १४. प्रति-कुंचनता-किसो के सरल रूप से कहे गये वचनों का खण्डन करना, १५. सातियोग-उत्तम वस्तु में हीन वस्तु की मिलावट करना। ये सब माया की ही विभिन्न अवस्थाएँ हैं। _माया के चार प्रकार- १. अनंतानुबन्धी माया (तीव्रतम कपटाचार)-बांस की जड़ के समान कुटिल, २. अप्रत्याख्यानी माया (तीव्रतर कपटाचार)-भैंस के सींग के समान कुटिल, ३. प्रत्याख्यानी माया (तीव्र कपटाचार)- गोमूत्र की धारा के समान कुटिल, ४. संज्वलन माया (अल्पकपटाचार)-बांस के छिलके के समान कुटिल। लोभ
मोहनीय-कर्म के उदय से चित्त में उत्पन्न होने वाली तृष्णा या लालसा लोभ कहलाती है। लोभ की सोलह अवस्थाएँ हैं- १. लोभ-संग्रह करने की वृत्ति, २. इच्छा-अभिलाषा, ३. मूर्छा-तीव्र संग्रह-वृत्ति, ४. कांक्षा-प्राप्त करने की आशा, ५. गृद्धि-आसक्ति ६. तृष्णा-जोड़ने की इच्छा, वितरण की विरोधी वृत्ति, ७. मिथ्या-विषयों का ध्यान, ८. अभिध्या-निश्चय से डिग जाना या चंचलता, ९. आशंसना-इष्ट-प्राप्ति की इच्छा करना, १०. प्रार्थना-अर्थ आदि की याचना, ११. लोलपनता-चाटुकारिता, १२. कामाशा-काम की इच्छा, १३. भोगाशा-भोग्य-पदार्थों की इच्छा, १४. जीविताशा-जीवन की कामना, १५. मरणाशा-मरने की कामना और १६. नन्दिराग-प्राप्त सम्पत्ति में अनुराग।
__ लोभ के चार भेद- १. अनंतानुबन्धी लोभ-मजीठिया रंग के समान जो छूटे नहीं, अर्थात् अत्यधिक लोभ। २. अप्रत्याख्यानी लोभ-गाड़ी के पहिये के औगन के समान मुश्किल से छूटने वाला लोभ। ३. प्रत्याख्यानी लोभ-कीचड़ के समान प्रयत्न करने पर छूट जाने वाला लोभ। ४. संज्वलन लोभ-हल्दी के समान शीघ्रता से दूर हो जाने वाला लोभ। १. भगवती सूत्र, १५/५/५ २. तुलना कीजिए - जीवनवृत्ति और मृत्युवृत्ति (फ्रायड)
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